71 वर्ष तक सोया नहीं

July 1971

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अखंड-ज्योति जून 71 के एक लेख में लगातार 27 वर्ष तक एक स्त्री के सोने का वर्णन छपा है। तमोमय अवस्था जीवनी शक्ति शिथिल पड़ जाती है फलस्वरूप देह निष्क्रिय ओर चेतना शून्य होती चली जाती है। भारतीय योगियों एवं तत्वदर्शियों ने ऐसी योग-साधनाओं का विकास किया गया है जिनसे जीव चेतना अपने चिर जागृत , प्रखर और कारण शरीर में अवस्थित हो जाती है ऐसे योगी को निद्रा की भी आवश्यकता नहीं रहती गीता में भगवान् कृष्ण ने महान् योगाभ्यासी अर्जुन को निद्राजित बताया है अर्थात् आत्म चेतना में प्रविष्ट व्यक्ति सोये या न सोये उससे उनके शरीर ,मन और जीवन पर कोई दबाव नहीं आता ।

यहाँ एक ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया जा रहा है जिससे उक्त दर्शन की पुष्टि होती हैं। आरमण्ड जैक्वि लुहरवेट नामक एक फ्रांसीसी वकील ऐसा अद्भुत व्यक्ति था जो लगातार 71 वर्ष तक एक दिन तो क्या एक क्षण को भी नहीं सोया।

सन् 1761 में पेरिस में जन्मे अरमाण्ड जब कुल 2 वर्श के थे तब की 21 जनवरी 1763 की बात है उनकी माँ उन्हें लेकर सम्राट लुई सोलहवें का मृत्यु दण्ड देखने गई। वहाँ का वीभत्स दृश्य देखकर सहमा हुआ बच्चा घर आया वह उछल कूद मचा रहा था तभी ऊपर रखी कोई वस्तु सिर पर गिरी उससे सिर में भारी चोट आई बच्चे को अस्पताल पहुँचाना पड़ा।

कई दिन तक लगातार बेहोश रहने के बाद जब चेतनता वापस लौटी तब न जाने शरीर के किस हिस्से में क्या वापस परिवर्तन हुआ कि उस बच्चे को नींद आना ही समाप्त हो गया। एक दो दिन, सप्ताह महीनों तक प्रतीक्षा की जाती रही किन्तु गई नींद फिर आई ही नहीं । ट्रैनकुलाइजर्स ( नींद लाने वाली औषधियां ) से लेकर मालिश तक विविध उपचार कर लिये गये पर फिर नींद आई ही नहीं।

चिन्ता इस बात की थी कि न सोने कारण स्वास्थ्य पर विपरित प्रभाव पड़ेगा, एक दो दिन ही न सोने पर मन उद्विग्न हो उठता विक्षिप्तता अपने लगती है , सामान्य व्यक्ति यदि आठ घण्टे प्रतिदिन न ले तो उन्हें जीवन चलाना कठिन हो जाये पर आश्चर्य है कि आरमाण्ड के बारे में की गई ऐसी सब धारणायें निर्मूल सिद्ध हुई।

वह नियमित रूप से पढ़े, शारीरिक श्रम करते रहे पढ़ लिखकर वकील बन गये, रात में जब लोग सोया करते हैं तब भी वह मुकदमों के मजमून बनाया करते या पिछली कोई पुस्तक पढ़ते रहते पर नींद तो घंटों लेटे रहने पर भी नहीं आती। 71 वर्ष की आयु में आरमाण्ड की मृत्यु 1864 में हुई। इस बीच उन्हें एक क्षण को भी नींद नहीं आई।

शास्त्रकार का कथन है यह जीवात्मा की संकलजागर अवस्था है-

कस्मिंश्चित्प्ताक्तनेकल्पेकस्मिंश्चज्जागतिक्वचित्अनिद्रालव एवान्तः संकल्पैक पराः स्थिताः॥ -योग वशिश्ठ 6।2।50।1

अर्थात्-जीव बिना सोये हुए कल्प या इस जगत में जब केवल मस्तिष्कीय चेतना में रहते हैं अर्थात् सकंल विकल्प स्थिति में रहते हैं तब यह अवस्था होती है।

इसी अवस्था को विकसित कर बीज जागृत अवस्था में ले जाना पूर्ण निर्मल ओर विश्व चेतना की अनुभूति प्राप्त करना है योगी उसी के लिये विभिन्न साधनाओं द्वारा अपना सहस्रार जगाया करते हैं।


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