पत्थर बोलते हैं , टीले गुर्राते हैं

July 1971

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शब्द की उत्पत्ति प्राकृतिक के संघात के अतिरिक्त कभी नहीं हो सकती । दो वस्तुएं टकराती है तभी ध्वनि होती है। किन्तु सृष्टि में जितने भी चेतन जीव है वह अपनी इच्छा से अपने मुख-यन्त्र द्वारा इच्छानुसार बोल सकते हैं। जीवों का बोलना उनकी इच्छा महत्वाकाँक्षा आवश्यकता और चेतनता का प्रतीक होता है।

प्रश्न यह है कि क्या अदृश्य जगत में भी ऐसी कोई शक्तियों है जो इच्छा अनुभूति ही न रखती हो पर किन्हीं विशेष परिस्थितियों में बोल भी सकती हो, शब्दों का उच्चारण भी कर सकती हो यदि की ऐसे उदाहरण मिले तो उन्हें अदृश्य सूक्ष्म जगत में भटकती हुई आत्माओं के अस्तित्व का ही प्रमाण मानना पड़ेगा और यह प्रमाण आज के सभ्यतावादी युग में देखने को मिल सकते हैं। “वान्डर बुक आफ दि स्ट्रेन्ज फैक्टस” नामक पुस्तक से उद्धृत दो उदाहरण नीचे प्रस्तुत है-

होनोलूलू से 75 मील की दूरी पर कवाई टापू है यह पश्चिमी आइलैण्ड के हवाइयाँ ग्रुप में आता है। नहिली के किनारे एक 60 फुट ऊँची और आधा मील लम्बी एक पहाड़ी है । इस बालू में कोरल, शेल्स तथा लावा के कण पाये जाते हैं जो अपने आप में एक आश्चर्य है उससे भी आश्चर्य यह है कि इस टीले से प्रायः कुत्ते के भौंकने की आवाज आया करती है। रात के अन्धकार और प्राकृतिक प्रकोप जैसे अवसरों पर यह ध्वनि बहुतायत से सुनने को मिलती है। बच्चों के लिये यह क्षेत्र निषिद्ध है क्योंकि यह बोजी सुनकर बच्चे डर जाते हैं। आज तक कोई भी विशेषज्ञ कोई भी वैज्ञानिक उस कारण की खोज नहीं कर पाया कि इस टीले से यह भौंकने की आवाज क्यों आती है।

ऐसा भी नहीं है कि पास के किसी गाँव आवाज आती हो । इतिहास में फ्रेड पैटजेल जिसे “हाग कालर चैम्पियन” के नाम से जाना जाता है वह तो उदाहरण है जिसके बारे में प्रसिद्ध है कि वह इतना ऊँचा बोलता था कि उसकी आवाज 3 मील दूर तक मजे से सुनी जा सकती थी किन्तु इस टापू में ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं , कोई भी जन्तु नहीं जिसकी आवाज इतनी दूर तक पहुँच सकती हो । रहस्य ज्यों का त्यों रहस्य बना हुआ है और अपने विश्लेषण की एक लम्बे समय से प्रतीक्षा कर रहा है।

इसी प्रकार नील नदी के उस पार कारनक के खंडहरों में दो पत्थर की घूरती हुई प्रतिमायें है। दोनों एक दूसरे की ओर मुँह किये एक मील के फासले पर जमी है इनमें से एक प्रतिमा तो पत्थर की तरह चुप खड़ी रहती है पर दूसरी से अक्सर कुछ बोलने की आवाज आया करती है।पत्थर की मूर्ति क्यों और कैसे बोलती है उसका पता लगाने की हर सम्भव कोशिश की गई किन्तु अभी तक तो कुछ ज्ञात हो नहीं पाया। मूर्ति में कोई रेडियो यन्त्र भी नहीं लगे जिससे अनुमान किया जाये कि सम्भव है वह अदृश्य शब्द प्रवाहों को पकड़ लेते हो और वह ध्वनि में परिवर्तित हो जोते हो । फिर रहस्य क्या है यह सम्भव है कि मनुष्य हल न कर पाये क्योंकि उसकी आदत तो केवल स्थूल तक सोचने और समीक्षा करने की है अदृश्य सत्यों की शोध का उसमें स्वभाव और साहस कहाँ ? जो इन तथ्यों का पता लगाया जा सके ।


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