शाकाहार बनाम माँसाहार

July 1971

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माँस में स्थूलता बढ़ाने वाले तत्व हो सकते हैं पर दुर्बुद्धि, क्रोधी स्वभाव, असहिष्णुता, आलस्य कोष्ठ बद्धता अमानवता जैसे दुर्गुण भी माँसाहार में ही होते हैं । मानव अंतःकरण को प्रिय लगने वाले समस्त गुण शाकाहार से उपलब्ध होते हैं.यह बात प्रकृति के अध्ययन से स्पष्ट हो जाती है।

स्वामी वीर जी एकबार शाकाहार के समर्थन में व्याख्यान दे रहे थे बोले बैल और घोड़े शाकाहारी जीव हैं उनमें बोझा ढोने और दौड़ने की शक्ति तो मशीन से भी बढ़कर होती है। यदि मनुष्य केवल एक ही आहार भर पेट लेता रहे तो वह घोड़े की तरह मशीनों को भी परास्त करने वाला हो सकता है।

हाथी का बल विख्यात है वह भी शाकाहारी ही होता है- इस पर एक माँसाहारी सज्जन ने तर्क किया कि यदि हाथी अधिक बलवान् होता है तो शेर उसे क्यों परास्त कर देवा है ?-श्री वीर जी ने कहा-यदि आपके मन में यही भ्रम है तो आपको जानना चाहिए कि शेर को तो सुअर परास्त कर देता है जबकि शेर माँसाहारी होता है और सुअर अमाँसाहारी । शेर आवेश, छल और धोखे से आश्रय चकित करने वाले आक्रमण के कारण कभी हाथी को जीत लेता हो वह बात अलग है सीधे मुकाबले में हाथी कभी भी शेर का मुकाबला नहीं कर सकता ? एक और भी बात यह है कि हाथी पत्ता, घास, छाल, फल, दाना चाहे जो कुछ पा जाये खा जाता है तमाम तरह का आहार ठूँसते रहने के कारण तह जितना बलवान् होता है उतना बुद्धिमान नहीं, शेर बुद्धिमान होता है इसलिये भी वह एकाएक हमले में जीत सकता है पर हाथी के मुकाबले वह देर तक ठहर नहीं पाता ।

इंग्लैंड के प्राणि शास्त्री डॉ॰ इयेन हैमिल्टन ने अफ्रीका में रहकर लम्बे समय तक हाथियों के जीवन का अध्ययन किया वे दुनिया के सबसे बड़े हाथी विशेषज्ञ माने जाते हैं लिखते हैं कि हाथी से शेर कभी शेर से डरता नहीं एकबार मैंने देखा कि एक शेर ने हाथी के एक बच्चे पर धोखे से हमला कर दिया-उसकी माँ पास ही थी वह दौड़ी और सिंह से भिड़ गई और उसे पांवों से रौंदकर मार डाला। सत्य यह है कि शेर हाथी से डरते हैं और उनसे सीधे मुकाबले से सदैव कतराते हैं।

शक्ति की अपेक्षा मानवीय गुणों का महत्व अधिक है गुणों पर ही व्यक्ति, परिवार समाज और विश्व की सुख शाँति आधारित है। जहाँ माँसाहार दुर्गुणों का पोषण करता है वहाँ शाकाहार सद्गुणों की रक्षा और विकास इसलिए माँसाहार मानवता का पाप है वहाँ शाकाहार अंक पुण्य भी । ऊँट शाकाहारी जीव है वह सर्वाधिक सहिष्णु होता है,सर्प माँस खाता है इसीलिये क्रोधी, आलसी और चिड़चिड़े स्वभाव का होता है जबकि फुदकती रहने वाली क्रियाशील गिलहरी शाकाहारी होती है । समय पर यदि क्रोध और युद्ध प्रियता अनिवार्य हो तो वह भी शाकाहार में है भैंसा शाकाहारी जीव है इसकी युद्ध प्रियता और क्रोधी स्वभाव के आगे शेर तक हार मानते हैं। हिरण के शरीर जैसी लचक खरगोश जैसे जीव की उछाल और मेढ़े की सी प्रतिद्वंद्विता की शक्ति माँसाहारी जीवों में नहीं होती इससे यह सिद्ध होता है कि मानवता की रक्षा वाले सभी गुण शाकाहार में हैं माँसाहार में नहीं।


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