आत्म परिचय (Kavita)

March 1965

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हम सफर ! आज अन्तर-पट अपने खोलो,

मैं तुमको विप्लव गान सुनाने आया हूँ।

तुम माफ करो शत-बार धृष्टता यह मेरी,

मैं पारस हूँ और स्वर्ण बनाने आया हूँ॥

किस विद्रोही ने बम-बारूद सजाये हैं?

किसने मानवता के जीवन से खेला है?

यह लेकर आया कौन हाथ में चिनगारी?

किसके कारन यह फैला घोर झमेला है?

मैं जग का, जीवन का, मानव का साथी हूँ,

मैं सारे जग की ज्वाल बुझाने आया हूँ॥

यह सर्वनाश का बढ़ता रेगिस्तान देख,

तुम कहो न मुझ से इस सावन से क्या होगा।

इस जग में छाया गहन घोर अन्धेरा है,

तुम कहो न मुझको एक किरन से क्या होगा।

मैं एक किरन से तिमिर जवनिका तोड़ूंगा,

अब अंधकार की लाश जलाने आया हूँ॥

ओ आँधी! सुन ले मैं अब छोटा दीप नहीं,

जो तेरी लहर-झकोरों से बुझ जाऊँगा।

मैं अग्नि-ज्वाल का पुँज महा तेजस्वी हैं,

मैं तुझे लिपट कर नभ से जा टकराऊँगा।

तुम घर-घर यह संदेश सुना देना साथी!

इस धरती को मैं स्वर्ग बनाने आया हूँ।

तुम माफ करो शत-बार धृष्टता यह मेरी,

मैं पारस हूँ और स्वर्ण बनाने आया हूँ॥

—प्रकाश गज्जर.

*समाप्त*


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