निष्फल कर्मों में श्रम खर्च करना व्यर्थ है। क्रिया-शक्ति और पौरुष का इसमें फिजूल नाश हो जाता है। मुझे बहुत लोगों को इकट्ठा करके दिन-रात उपदेश देते रहना अच्छा नहीं लगता। बुरे को सीख देना अपनी वाणी खोना है। समय तो नष्ट होता ही है कभी-कभी अकारण वैर-भाव भी ठन जाता है। इसलिए शिक्षा देते समय यह ध्यान दे लेना बहुत उपयोगी होता है कि उस पर, जिसे उपदेश दिया जा रहा है कुछ प्रभाव भी पड़ता है। ऊसर में बीज बिखेरने से क्या लाभ, गन्दी नाली में एक बाल्टी पानी से कहीं सफाई होती है? दुष्ट को उपदेश देने से क्या लाभ? दुर्जन को अच्छी-अच्छी शिक्षा दी जाय तब भी वह साधु नहीं हो सकता जैसे नीम के पेड़ को यदि घी और दूध से भी खींचा जाय तो भी वह मधुर नहीं होगा।
तुम शिक्षा देने का क्रम बन्द न करना पर यह देखने में भी भूल नहीं करना कि श्रोतागण आपकी शिक्षा ग्रहण करने के लिए उत्कंठित हैं अथवा तुमने वैसी उत्कंठा उसमें पैदा कर दी है। बीज जोती हुई जमीन में डालते हैं तो यह उगता ही है, बढ़ता, फलता-फूलता और समय पर फल भी देता है। किन्तु पत्थरों में बीज बिखेरने का कोई फल नहीं, महत्व नहीं। ऐसा करोगे तो तुम्हारी गाँठ का बीज भी बेकार जाएगा। दुर्जनों के पास जाकर मौन हो जाना अच्छा है ताकि अपनी वाणी-शक्ति का कम से कम दुरुपयोग तो न हो