क्या आपने कभी विचार किया है नींद के बारे में? वह नींद जिसके अथाह सागर में हम अपने समस्त दुःख, द्वन्द्व, परेशानियों को एक बारगी डुबो देते हैं, और फिर स्वस्थ स्फूर्तिमय तरो-ताजा होकर नव-शक्ति के साथ जीवन-पथ पर चलने लगते हैं। प्रकृति की कैसी महान देन है निद्रा, मनुष्य के लिए। शेक्सपीयर ने कहा है—”निद्रा प्रतिदिन के जीवन के लिए मृत्यु, कठिन परिश्रम के लिये स्नान, घायल मस्तिष्क के लिए शान्तिदायिनी औषधि और क्षतिपूर्ण शरीर के लिये अमृतकुण्ड है?” वस्तुतः मृत्यु के अनन्तर भी हम एक लंबे विकास की स्थिति में होते हैं और जिस तरह हँसते, खेलते शिशु के रूप में पुनः जीवन धारण करते हैं उसी तरह प्रतिदिन की नींद के बाद भी नव-चेतना नव जीवन प्राप्त कर अपने काम-काज में लग जाते हैं। कैसा अद्भुत खेल है यह ? कैसी महान कृपा है, निद्रा देवी की मनुष्य पर। वह हारा थका चूर-चूर होकर संसार की परेशानियों से क्लाँत होकर निद्रादेवी की गोद में सोता है लेकिन नव शक्ति स्फूर्ति, नव-जीवन, प्रसन्नता उत्साह लेकर उठता है। इस महान् उपकार के बदले हमें कुछ भी नहीं देना पड़ता। नित नव-जीवन प्राप्त करने का हमारा कैसा जन्मसिद्ध अधिकार है। जिसकी तुलना में संसार का कोई भी पदार्थ समर्थ नहीं है। यदि कुछ दिनों मनुष्य को लगातार जागना पड़े तो उसकी मृत्यु हो सकती है वह पागल हो सकता है। कितनी आवश्यक है नींद हमारे जीवन के लिए।
निद्रा प्रकृति देवी का निःशुल्क उपहार है, जिसके लिए हमें कुछ खर्चना नहीं पड़ता न कोई कष्ट उठाना पड़ता है न कुछ करना पड़ता है, लेकिन फिर भी हम में से बहुत से इसका लाभ नहीं उठा पाते। उन्हें अनिद्रा की शिकायत बनी रहती है। कई बार नींद के लिए हम कृत्रिम उपाय करते हैं लेकिन उसका यह लाभ नहीं उठा पाते जो सहज रूप में नींद आने पर प्राप्त होता है।
नींद के लिए शास्त्रकार ने कुछ नैतिक आवश्यकतायें बताते हुए लिखा है—
ब्रह्मचर्येरतेर्ग्राम्यसुख निस्पृहचेतसः।
निद्रा सन्तोषतृप्तस्य स्वकालं नातिवर्तते॥
“जो मनुष्य सदाचारी है विषय भोग से निस्पृह और सन्तोष से तृप्त है उसको समय पर निद्रा आये बिना नहीं रह सकती।”
सचमुच सदाचारी विषय भोगों से निस्पृह सन्तोषी व्यक्ति ही निद्रा का वास्तविक लाभ उठा सकता है। उसे समय पर नींद आयेगी जिस तरह समय पर सूरज डूबता है रात्रि होती है। हमें नींद क्यों नहीं आती, अनिद्रा की बीमारी समाज में क्यों फैलती जा रही है? इसलिये कि हमारा आचरण दूषित होता जा रहा है, हम विषय-भोगों में रात-दिन आसक्त रहते हैं, असन्तोष की न बुझने वाली ज्वाला हमारे अन्तर में दहकती रहती है फिर कैसे हमें स्वस्थ नींद आ सकती है? इसमें कोई सन्देह नहीं कि स्वस्थ नींद के लिए शरीर और मन का स्वस्थ सन्तुलित होना, व्यवस्थित दिनचर्या आवश्यक है। जो जीवन के सहज क्रम को छोड़कर किसी भी क्षेत्र में अति करते हैं उन्हें अनिद्रा की शिकायत होना स्वाभाविक है।
बहुत से व्यक्ति स्वभाव से अत्यधिक चिन्तनशील प्रकृति के होते हैं। दिन-रात उनका दिमाग किसी उधेड़-बुन में ही डूबा रहता है। ऐसे लोग चारपाई पर पड़कर करवटें बदलते हैं, चुपचाप होकर पलकें बन्द करते हैं किन्तु उनके चिन्तन का क्रम एकान्त पाकर अधिक तीव्र होता है और उन्हें नींद नहीं आती। इसके विपरीत दिन-भर का हारा थका मजदूर कठोर भूमि में भी तत्काल सो जाता है। क्योंकि वह चिन्तन के अधिक झगड़े में नहीं पड़ता। इसके माने यह नहीं कि चिन्तन बुरा है। मनुष्य को सोच विचार ही नहीं करना चाहिये। नहीं, मनुष्य का चिन्तनशील होना बहुत ही महत्वपूर्ण है। चिन्तन के क्षणों में ही नव अन्वेषण का कार्य होता है, लेकिन इसकी सीमा भी होनी चाहिए। कम से कम उस समय तक तो आप अपने चिन्तन के विषय और बोझ को दिमाग से बाहर ही उतार कर रख दें जब सोने के लिए शय्या पर पैर रक्खें।
चिन्तन, विचारशीलता चाहे अच्छी दिशा में चले या बुरी में उसका आप पर अधिकार नहीं होना चाहिए। जब आप चाहें तब सोचें और जब न चाहें तब सोचना बन्द कर दें ऐसा अभ्यास होने पर ही यह आपकी निद्रा में बाधक नहीं बन सकते। महात्मा गाँधी कितने उच्च विचारक थे लेकिन जब उन्हें विश्राम करना होता था तो तत्काल सो जाते थे इतना संयम था उन्हें अपने मन पर।
वस्तुतः अनियमित अनियन्त्रित, सोच-विचार- चिन्तन से मनुष्य के स्नायु अत्यधिक उत्तेजित हो जाते हैं। मन का स्वभाव है वह जिस विषय को पकड़ लेता है उसका ही ताना-बाना बुनने लगता है और बरबस मनुष्य विचारों में खो जाता है। ऐसे व्यक्ति को कुछ झपकी लग भी जाय तो उसकी नसें इतनी उत्तेजित रहती हैं कि स्वप्न के माध्यम से वे अपना काम करने लगती हैं। और इससे नींद अपूर्ण ही रह जाती है। जो रात स्वप्नों में बीती हो उस दिन उठने पर आपका बदन थका-थका अलसाया सा होगा।
अतः सोने से पूर्व सभी प्रकार की चिन्ता, विचार आदि को मन से निकाल दीजिए, स्वस्थ और खाली मन से शय्या पर विश्राम की अवस्था में लेटते हुए अपने मस्तिष्क को पूर्णतया शून्य बनाने का प्रयत्न करें और निद्रा के प्रत्येक झोंके के साथ उस शून्य में विलीन हो जायँ जहाँ आप, आपका संसार दीन दुनिया की बातें सब विलीन हो जाती हैं।
अनिद्रा का कारण शारीरिक श्रम न करना भी है। आज के तथाकथित वैज्ञानिक सभ्यता के युग में हमारे एक बहुत बड़े दुर्भाग्य का उदय हुआ है। वह यह है कि हम शरीर श्रम को बुरा, छोटेपन की निशानी समझते हैं और उससे बचते हैं। श्रम के अभाव में शरीर में रक्त भ्रमण ठीक से नहीं होता। गन्दगी विषाक्त तत्व शरीर में एकत्र होने लगते हैं तो हमारे हृदय, स्नायु मस्तिष्क आदि को उत्तेजित कर देते हैं और इससे नींद आने में बाधा पड़ती है। आप परीक्षण करें तो आपको मालूम होगा कि नींद न आने की बीमारी अधिकतर शरीरश्रम न करने वालों को ही होती है।
स्वस्थ नींद लेनी है तो पर्याप्त शरीरश्रम भी करें। काम करें। घूमने जायें, खेलें। जो अपनी सुविधा और रुचि के अनुकूल हो ऐसा शरीर निष्ठ श्रम अवश्य करें।
समय पर स्वस्थ नींद के लिए अपनी दिनचर्या का नियमित और व्यवस्थित होना आवश्यक है। समय पर उठिए, समय पर अपना काम कीजिए, समय पर भोजन कीजिए, टहलने जाइये। समय पर नियमित रूप से सो जाइए आप ठीक समय पर स्वस्थ नींद ले सकेंगे। जिन लोगों को उठने, बैठने, खाने, पीने, काम करने, सोने, जागने का कोई समय नहीं होता जो अस्त-व्यस्त जीवन बिताते हैं, रात-रातभर जाग-जाग कर सिनेमा देखते हैं, ताश पत्ता खेलते हैं, उन्हें स्वस्थ नींद से प्रायः वंचित ही रहना पड़ता है। समय पर पूर्ण विश्राम मिले इसके लिए आवश्यक है कि आप अपना सम्पूर्ण जीवनक्रम व्यवस्थित, नियमित रखें।
बुरे विचार और बुरे कार्य भी नींद के शत्रु माने गये हैं। ऊपर कहा जा चुका है—सदाचारी को, सन्तोषी को, स्वस्थ नींद आए बिना नहीं रह सकती। गन्दे विचार, उन्हें पैदा करने वाला गन्दा साहित्य, उपन्यास अश्लील वार्तालाप, अभद्र व्यवहार गन्दे चित्रों से मनुष्य को बचना चाहिए। चरित्र का संयमी सदाचारी होना भी आवश्यक है। आधुनिक युग में हम लोगों का चारित्रिक पतन और दुराचार पूर्ण, गन्दा जीवन, गन्दे विचार अश्लील कल्पनाएँ एवं द्वेष, आवेश, संशय, भय अविश्वास आदि अनिद्रा की बीमारी के मुख्य कारण हैं।
स्वस्थ नींद के लिए मनुष्य को सभी तरह के नशीले उत्तेजक पदार्थों का त्याग कर देना चाहिये। चाय, बीड़ी, सिगरेट, कहवा, शराब आदि का उपयोग भी अनिद्रा का कारण बन जाता है। इन्हें जितनी मात्रा में छोड़ा जा सके स्वस्थ नींद के लिये उत्तम होगा। खासकर सोने के पूर्व तो इनका उपयोग करना ही नहीं चाहिए।
यह भी ध्रुव सत्य है कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ नींद का आगमन होता है। शरीर में कोई बीमारी है, अथवा कोई दोष है तो इससे मनुष्य को समय पर नींद नहीं आती। रोग, शरीर दोष जितना तीव्र होता है उतनी ही अनिद्रा की शिकायत बढ़ जाती है। अस्तु अपने शरीर को स्वस्थ रखिये।
भोजन जो हम करते हैं उसका भी हमारी नींद पर भारी प्रभाव पड़ता है। भारी, देर से पचने वाले भोजन करके सो जाने पर पेट के अवयव तेजी से काम करने लगते हैं। ऐसी स्थिति में मनुष्य को नींद देर में, कठिनाई से आती है तथा स्वप्नों में, रात काटनी पड़ती है जिससे विश्राम का उद्देश्य पूरा नहीं हो पाता। अस्तु हल्का, सुपाच्य, पौष्टिक भोजन कीजिये और सोने से करीब तीन घण्टे पूर्व ही उससे निवृत्त हो लीजिए। शारीरिक वेग जैसे टट्टी, पेशाब की शिकायत को तुरन्त दूर करके सोयें।
सोने के स्थान और वातावरण का भी बहुत प्रभाव पड़ता है। जहाँ तक हो कोलाहलशून्य, शान्त, स्वस्थ स्थान हो सोने के लिए। शुद्ध वायु का पूरी तरह आवागमन हो। किसी तरह के कीड़े-मकोड़े, पिस्सू, खटमल, मच्छर आदि से युक्त सोने का स्थान न हो।
किसको कितना सोना चाहिए, कब सोना चाहिए, यह मनुष्य को अपनी शारीरिक माँग, समय और परिस्थितियों के अनुसार स्वयं निर्णय कर लेना चाहिए।
निद्रा के लिए सबसे महत्वपूर्ण बात है शयन कक्ष में जाने से पूर्व अपने मन को पूर्णतया निर्विकार, शान्त, संकल्पहीन, शान्त बनाने की। इसके लिए किसी अच्छे ग्रन्थ का पाठ, ईश स्मरण, शुभ संकल्प करते हुए अपने आपको निद्रा देवी की गोद में सौंपकर शून्य में विलीन हो जाने का अभ्यास उत्तम है। नींद के लिए भूलकर भी किन्हीं दवाओं का उपयोग न करें। इससे आपके शरीर पर बड़ा दुष्प्रभाव पड़ेगा और नींद न आने की बीमारी अधिक बढ़ेगी।