हम मुसीबतों से घबराएँ नहीं

March 1965

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संसार में ऐसा कोई मनुष्य नहीं, जिसे जीवन में कभी मुसीबतों का, विपत्तियों का सामना न करना पड़ा हो। दिन और रात के समान सुख-दुख का कालचक्र सदा घूमता ही रहता है। जैसे दिन के बाद रात्रि का आना अवश्यम्भावी है, वैसे ही सुख के बाद दुःख का भी आना अनिवार्य है। दुःख भी आध्यात्मिकता की परीक्षा होती है। जैसे सुवर्ण अग्नि में तपकर अधिक सतेज बनता है, वैसे ही धैर्यवान मनुष्य विपत्तियों का साहस के साथ सामना करते हुए जीवन संग्राम में विजय प्राप्त करता है। विपत्तियों की हम किस तरह उपेक्षा कर सकते हैं और अनिवार्य होने पर उनका किस तरह मुकाबला कर सकते हैं, इस पर हम विचार करें।

विपत्तियाँ वास्तव में कुछ नहीं, केवल हमारी प्रतिकूलताएँ हैं। हम जिन वस्तुओं की जिन परिस्थितियों की इच्छा करते हैं, उनका प्राप्त न होना ही विपत्तियाँ कहलाता है। हमारी इच्छा के प्रतिकूल, हमारे स्वार्थ के प्रतिकूल जो भी बात सामने आई, उसे ही हम विपत्ति मान लेते हैं। यदि हम अपने स्वार्थ को, मोह-ममता को और इच्छाओं को मर्यादित और संयमित रखें तो हमें जीवन में बहुत कम मुसीबतों का सामना करना पड़ेगा। हमारा जीवन सदा, स्वावलंबी और सहिष्णु बनने पर विपत्तियों से हमें बहुत कम पाला पड़ेगा और यदि पाला पड़ा भी तो हम उसे हँसते हुए सहज भाव से स्वीकार कर उन पर हावी हो सकेंगे।

विपत्तियाँ साहस के साथ कर्मक्षेत्र में बढ़ने के लिए चुनौती हैं। हम उनसे घबरायें नहीं। बहुत-सी मुसीबतें तो केवल काल्पनिक होती हैं। छोटी-मोटी बातों को तूल देकर हम व्यर्थ ही अपने चारों ओर भय का भूत खड़ा कर लेते हैं। किसी भी कार्य को हाथ में लेने के पहले ही हम उसकी असफलता का चित्र अपने मनःचक्षु के सम्मुख उपस्थित कर लेते हैं और केवल मजबूर होकर उस कार्य को बेमन से किया करते हैं। ऐसी दशा में कार्य में सफलता कैसे प्राप्त होगी? और फिर असफल होने पर भाग्य को कोसते हुए निराश होकर बैठ जाते हैं। हमारी बहुत-सी विपत्तियाँ इसी प्रकार के हमारे अधूरे मन की उपज हुआ करती हैं। इनके अतिरिक्त परिस्थिति, भाग्य, अज्ञान या अन्य अनभिज्ञ कारणों से भी मनुष्य को विपत्तियों का सामना करना पड़ता है। पर यदि हम इन्हें ईश्वर द्वारा हमारी आस्तिकता, आत्म-विश्वास, धैर्य एवं सहिष्णुता की परीक्षा के लिए प्रदत्त उपकरण मानकर हँसते हुए साहस के साथ सहने का अभ्यास डाल लें तो कोई भी मुसीबत, मुसीबत नहीं मालूम पड़ेगी बल्कि उन्हें हम हँसी-खेल समझ कर आसानी से झेलते हुए अपने कर्तव्य मार्ग पर अबाधित गति से अग्रसर होते रहेंगे।

ऐसी भी कई विपत्तियाँ हो सकती हैं, जिनका साहसपूर्वक मुकाबला करने पर भी हमारा घोर अनिष्ट कर दें, पर हमें उसे भी ईश्वरी विधान मानकर सहर्ष स्वीकार करना चाहिए। इससे हमारा आँतरिक मनोबल बढ़ेगा और हम कठिन से कठिन परिस्थितियों का सामना करने की शक्ति अर्जित कर सकेंगे। हमें हर परिस्थिति में अपने मन को सन्तुलित, शान्त और स्थिर रखने का प्रयत्न करना चाहिए। हमें अपने से अधिक सम्पन्न और सुखी व्यक्तियों को देखकर ईर्ष्यालु एवं खिन्न होने की बजाय करोड़ों अपने से अधिक साधनहीन दुःखी एवं अभावग्रस्त लोगों की ओर देखकर संतोष मानना चाहिए कि हम पर भगवान की बड़ी दया है।

किसी वस्तु के अभाव का नाम ही विपत्ति है अतः अभाव के लिए रात-दिन चिंता करते रहना व्यर्थ है। हम अपनी परिस्थिति को सुधारने का भरसक प्रयत्न करते रहें और उसके मार्ग में आने वाली संकटों का धैर्यपूर्वक मुकाबला करें। पर यदि प्रयत्नों के बावजूद हमारी आकाँक्षा और इच्छाओं के अनुसार हमारी परिस्थिति में किसी अज्ञात कारणवश शीघ्र वाँछित परिवर्तन या सुधार नहीं होता है, तो हमें घबराकर प्रयत्नों को नहीं छोड़ देना चाहिए बल्कि दुगने उत्साह के साथ हमें अपनी उद्देश्य-प्राप्ति में जुट जाना चाहिए। कष्ट या विपत्ति के आने पर कभी-कभी हमारी विचार- शक्ति भ्रमित और कुँठित सी हो जाती है, ऐसे समय हम अपने आत्म मित्र एवं हितचिंतकों से इस विषय में परामर्श और मार्गदर्शन प्राप्त करने का प्रयत्न करें। संभव है उनकी सूझबूझ और सहायता से हमारे संकट का अनायास निवारण हो जाय। समस्या को हम अपने परिवार के सदस्यों के सन्मुख उपस्थित कर उनकी सलाह भी लें। इस प्रकार हमें कहीं न कहीं से ऐसे प्रेरक विचार मिल जायेंगे, जिनके द्वारा हम अपनी कठिनाई का आसानी से निवारण कर सकेंगे।

जीवन एक संग्राम है। इसमें वही व्यक्ति विजय प्राप्त कर सकता है, जो या तो परिस्थिति के अनुकूल अपने को ढाल लेता है या जो अपने पुरुषार्थ के बल पर परिस्थिति को बदल देता है। हम इन दोनों में से किसी भी एक मार्ग का या समयानुसार दोनों मार्गों का उपयोग कर जीवन-संग्राम में विजयी हो सकते हैं।

स्मरण रखिए, विपत्तियाँ केवल कमजोर, कायर, डरपोक और निठल्ले व्यक्तियों को ही डराती, चमकाती और पराजित करती हैं और उन लोगों के वश में रहती हैं जो उनसे जूझने के लिए कमर कसकर तैयार रहते हैं। ऐसे व्यक्ति भली-भाँति जानते हैं कि जीवन यह फूलों की सेज नहीं वरन् रणभूमि है, जहाँ हमें प्रतिक्षण दुर्भावनाओं, दुष्प्रवृत्तियों और आपत्ति से निडर होकर जूझना है। वे इस संघर्ष में सूझबूझ से काम लेते हुए अपना जीवन-क्रम तदनुसार ढाँचे में ढालने का प्रयास करते रहते हैं और हमेशा इस बात का स्मरण रखते हैं कि किसी भी तात्कालिक पराजय को पराजय न माना जाय बल्कि हर हार से उचित शिक्षा ग्रहण कर नये मोर्चे पर युद्ध जारी रखा जाय और अन्तिम विजयश्री का वरण किया जाय। इस प्रकार के दृढ़ संकल्प वाले कर्मठ व्यक्ति कभी अपने जीवन में निराश नहीं होते अपितु वे दूसरे निराश एवं हताश व्यक्तियों के लिए प्रेरणा के केन्द्र बन जाते हैं।

बहुत से मनुष्य अकारण ही अपने मार्ग में काल्पनिक विघ्न, बाधाओं का ख्याल करते रहते हैं। इससे उनका मन कमजोर हो जाता है। उनमें किसी प्रकार का साहस नहीं रहता और उनकी बौद्धिक शक्ति भी नष्ट हो जाती है उनका मन निषेधात्मक हो जाता है। ऐसे मनुष्यों को अपने चारों ओर विघ्न, बाधायें ही दिखाई देने लगती हैं। उनका आत्म-विश्वास नष्ट हो जाता है और वे सारा जीवन रोते-झींकते निराशा में व्यतीत करते रहते हैं। वास्तव में आशा और आत्म-विश्वास ही महान् शक्तियाँ हैं, जिनके बल पर हम अनेक महान और कठिन दिखाई देने वाले कार्यों को आसानी से एवं सफलतापूर्वक सम्पन्न कर सकते हैं।

जीवन संग्राम में विजय प्राप्त करने के लिए अपने कार्यक्षेत्र रूपी अखाड़े में निडर होकर खम ठोंक कर लड़ते रहने की आवश्यकता है। इसी तरीके से आप सभी सामान्य संकटों और विपत्तियों से लोहा लेकर उन्हें परास्त कर सकते हैं। राम, कृष्ण, महावीर, बुद्ध, ईसा, मोहम्मद, स्वामी दयानन्द, महात्मा गाँधी आदि महापुरुषों के जीवन संकटों और विपत्तियों से भरे हुए थे, पर वे संकटों की तनिक भी परवाह न करते हुए अपने कर्त्तव्य मार्ग पर अविचल और अबाध गति से अग्रसर होते रहे। फलतः वे अपने उद्देश्य में सफल हुए और आज संसार उन्हें ईश्वरी अवतार मानकर पूजता है।

विपत्तियों एवं कठिनाइयों से जूझने में ही हमारा पुरुषार्थ है। हमारे राष्ट्र नायक पं0 जवाहर लाल नेहरू का कथन है ‘हमेशा खतरों से भरा जीवन जियो’ बिना संकटों के मनुष्य का जीवन निखर नहीं सकता और न उसमें त्याग, तितिक्षा एवं सहिष्णुता का ही विकास हो पाता है। अतः कठिनाइयों को खिलवाड़ समझकर उनका हँसते-हँसते मुकाबला करना सीखिए। धैर्य की परीक्षा आपत्तिकाल में ही होती है—

धीरज, धर्म, मित्र, अरु नारी।

आपतिकाल परखिए चारी॥

रामायण की इस चौपाई को हम अहर्निश ध्यान में रखते हुए आने वाली हर मुसीबत का निर्भीकता और दृढ़ता के साथ सामना करें। आप देखेंगे कि ज्यों ही हम विपत्तियों का मुकाबला करने के लिए कटिबद्ध होंगे, त्यों ही विपत्तियाँ दुम दबाकर भाग खड़ी होंगी, संकटों के सब बादल छँट जाएंगे और परिस्थिति निष्कंटक होकर हमारे लिए अनुकूल हो जायगी।


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