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March 1965

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अन्तः शातलायाँतुलब्धयाँ शीतलं जगत्।

—योग वशिष्ठ

जिसने अन्तःकरण को शीतल बना लिया उसके लिए सारा संसार ही शीतल है।

शरीर बल, चरित्र बल और मनोबल के द्वारा पुरुष अपना सौमनस्य स्थापित रखे तो सम्पत्ति और समाज की बहिर्मुखी कठिनाइयाँ दाम्पत्य-सुख, को परास्त न कर पायेंगी। अपने जीवन में सदाशयता का प्रयोग करना है ताकि हमारा जीवन सुखी सन्तुष्ट तथा उन्मुक्त बन सके। ऐसा कर सके तो यही समझें कि आपका स्वर्ग आपके घर में ही आने वाला है।

छोटे-बड़े पढ़े-अनपढ़े, धनी-निर्धन का भेद-भाव रखना मनुष्य की सबसे बड़ी कुटिलता है। इससे मनुष्य की उच्छृंखल प्रकृति व्यक्त होती है। वन्य पशु तथा दाम्पत्य जीवन में बँध कर रहने वाले पक्षियों में ऐसा किसी तरह का भेद नहीं होता। मनुष्य में यह भेद-नीति उसके भौतिकवादी दृष्टिकोण के कारण होती है। स्त्री-पुरुष का संबंध विशुद्ध रूप से आध्यात्मिकता से ओत-प्रोत होना चाहिए। इस बात को याद रखने के लिए समय-समय पर धर्मानुष्ठान तीर्थ, यात्रा, पूजा-अर्चा के आयोजन भी होते रहें जिससे आत्मिक पवित्रता का परिष्कार हो। विवाह-जयन्ती मनाने का प्रचलन भी किया जा सकता है इसमें—एक दूसरे के प्रति निष्ठावान बने रहने का संकल्प दोहराते रहना चाहिए।


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