माघ मास के बाद अब आगामी शिविर ज्येष्ठ मास में होगा। ता. 15 मई से 14 जून तक यह चलेगा। जिन्हें चान्द्रायण व्रत के साथ सवालक्ष अनुष्ठान करना हो उन्हें ता0 14 मई की शाम तक मथुरा आ जाना चाहिए। इस एक महीने में संजीवन विद्या का प्रशिक्षण तथा लेखन एवं भाषण द्वारा लोक शिक्षण की व्यवस्थित कार्य-पद्धति से लाभ उठाने का अवसर मिलेगा।
धर्म प्रचारक युग निर्माता तैयार करना इस शिविर का विशेष उद्देश्य है। वाणी और लेखनी को माध्यम बना कर युग निर्माण के लिए रचनात्मक कार्यकर्ताओं का सृजन करना नितान्त आवश्यक है। व्यक्तियों के बिना युग निर्माण योजना को साकार स्वरूप न दिया जा सकेगा। अतएव ज्येष्ठ के शिविर को 15—15 दिन के दो भागों में विभाजित किया गया है। ता. 15 से 30 मई तक धर्म मंच का अवलंबन कर प्रवचन कर सकने की क्षमता उत्पन्न करने का प्रशिक्षण दिया जायगा। (1) गीता की सप्ताह कथा (2) सत्य नारायण कथा (3) पर्वोत्सव मनाने को व्याख्यान तथा विधान (4) षोडश संस्कारों के विधान तथा उन अवसरों पर किये जाने वाले प्रवचन (5) सामूहिक गायत्री यज्ञों का विधान तथा उन्हें करने के साथ लोक शिक्षण का अभ्यास, यह पंच सूत्री प्रशिक्षण आरम्भिक पन्द्रह दिनों में चलेगा। इन विषयों पर हमारे भाषण सुनने को मिलेंगे तथा विधि-विधानों को प्रत्यक्ष रूप से कराके दिखाया जायगा। शिक्षार्थियों को उपरोक्त विषयों पर स्वयं बोलने तथा क्रियाकाण्डों के करने का अवसर मिलेगा। जो त्रुटियाँ रहेंगी उन्हें ठीक कराया जायगा। ताकि यहाँ से जाने से बाद शिक्षार्थी अपने-अपने कार्य क्षेत्रों में धड़ल्ले के साथ प्रस्तुत योजना के अनुसार कार्य कर सकने में समर्थ हो सकें।
शिविर का उत्तरार्ध लेखन प्रशिक्षण के लिए सुरक्षित है। ता. 31 मई से 14 जून तक यह शिविर चलेगा। नवोदित समाज के लिए प्रेरणाप्रद साहित्य की अत्यधिक आवश्यकता है। खेद की बात है कि आज जो कुछ लिखा या छापा जा रहा है उसमें से अधिकाँश कूड़ा-करकट की श्रेणी का है और उसका बहुत-सा भाग ऐसा है जिसे अश्लील एवं पथभ्रष्ट करने वाला कहा जाय तो कुछ भी अनुचित न होगा। नये समाज की अभिनव रचना के लिए जिस प्रकार के साहित्य की आवश्यकता है उसका सृजन नहीं के बराबर ही हो रहा है। इस आवश्यकता की पूर्ति के लिए हमें नये साहित्यकारों एवं लेखकों का निर्माण करना होगा। परिवार में कितने ही सुशिक्षित व्यक्ति ऐसे हैं जिनमें इस प्रकार की क्षमता विद्यमान है पर उनका समुचित पथ-प्रदर्शन न होने से वे कुछ कर पाने में समर्थ नहीं होते। इस शिविर में उन्हें लेखन संबंधी वह सारी शिक्षा सार रूप से दी जायगी जो हमने अपने 35 वर्ष के साहित्य जीवन में अनेक कटु, मधुर अनुभवों के बाद संचित की है।
भारत में लगभग 3000 हिन्दी की और 5000 अन्य भाषाओं की पत्र-पत्रिकाएँ प्रकाशित होती हैं। इनके पाठक करीब 5 करोड़ हैं। विचार यह है कि युग निर्माण योजना की विचारधारा को इन सभी पत्रों में लेख रूप में नियमित रूप से छपना आरम्भ करा दिया जाय।
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फार्म 4
मैं, श्रीराम शर्मा आचार्य यह घोषित करता हूँ कि नीचे दिये गये सब विवरण मेरी अधिकतम जानकारी और विश्वास के अनुसार सत्य हैं।
प्रकाशन का स्थान — मथुरा
प्रकाशन का अवधि -क्रम—मासिक
मुद्रक का नाम—श्री राम शर्मा आचार्य
राष्ट्रीयता—भारतीय
पता—बम्बई भूषण प्रेस, मथुरा।
प्रकाशक का नाम—श्री राम शर्मा आचार्य
राष्ट्रीयता—भारतीय
पता—अखण्ड-ज्योति संस्थान मथुरा
संपादक का नाम—श्री राम शर्म आचार्य
राष्ट्रीयता—भारतीय
पता—अखण्ड-ज्योति संस्थान मथुरा
स्वत्वाधिकारी—श्री राम शर्मा आचार्य
अखण्ड-ज्योति संस्थान मथुरा
(हस्ता.) श्रीराम शर्मा आचार्य
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हमने स्वयं अब तक 25 वर्षों में बहुत कुछ लिखा है। उन्हीं विचारों को नये रूप से लिख कर नये लेखक इन पत्रों में अपने नाम से छपाना आरम्भ करेंगे तो उनका उत्साह बढ़ेगा, पत्रों को मैटर मिलेगा और हमारा उद्देश्यपूर्ण होगा। भारत की प्रायः सभी पत्रिकाएँ हमारे यहाँ मौजूद हैं। उनमें से 5—5 अखबार एक-एक लेखक के जिम्मे कर देंगे और ऐसा प्रबन्ध कर देंगे कि उनके लेखों को सम्पादक लोग छापते रहें। इस तरह नये लेखकों का उत्साह एवं अनुभव बढ़ता चलेगा और वे धीरे-धीरे साहित्य क्षेत्र में अपनी प्रतिभा विकसित करते हुए राष्ट्र के नव निर्माण में महत्वपूर्ण योग दे सकेंगे। पुस्तकों और ग्रन्थों का प्रणयन, कठिनताएँ, प्रकाशन व्यवसाय, सम्पादन, संवाददाता होने की जानकारी, प्रेस चलाने का अनुभव आदि कितने ही अपने अनुभवों के वे निचोड़ हम इस 15 दिन की अवधि में सिखा देंगे जो जीवन-भर प्रयत्न करते रहने पर भी साधारणतया प्राप्त नहीं होते।
जो लोग पूरे एक महीने रहना चाहें वे प्रसन्नतापूर्वक दोनों प्रशिक्षणों का लाभ उठा सकते हैं। जिनके पास समय कम हो वे अपने अभीष्ट एक शिविर में भी रह सकने को स्वतंत्र हैं। जिन्हें चान्द्रायण व्रत करना हो करें जिन्हें न करना हो न करें। पर जो कुछ भी करना सीखना हो, जितने दिन रहना हो उसकी पूरी सूचना देकर पूर्ण स्वीकृति अवश्य प्राप्त कर लेनी चाहिए। बिना स्वीकृति के किसी को भी लिया न जायगा। आगन्तुक अपने स्त्री, बच्चों को साथ लाना चाहें तो भी ला सकेंगे भोजन व्यय सबको अपना करना होगा। अच्छा हो कुछ लोग मिल-जुल कर अपने भोजन बनाने का प्रबंध स्वयं कर लिया करें। इसमें सस्ता भी पड़ेगा और अच्छा रहेगा।