दैवी ज्ञान हुए बिना मनुष्य को अपनी कीमत नहीं मालूम होती और इसलिए अपने विषय में वह औरों से जानना चाहता है। जब कि अपने संबंध में वह अपनी आत्मा से विश्वस्त किन्तु दृढ़तापूर्वक जानकारी कर सकता है। साँसारिक दृश्य पर देव मोहित नहीं होते क्योंकि निरन्तर अन्तर दृष्टि रखने के कारण उन्हें अपने भीतर ही उससे अधिक महत्वपूर्ण चीजें मिल जाती हैं।
—महर्षि रमण