न देवा दण्डमादाय रक्षन्ति पशुपालवत्।
यं तु रक्षितु मिच्छन्ति बुद्धया संविभजन्तितम्॥
विदुर नीति 3। 40
देवता लोग किसी की रक्षा के लिए ग्वाले के समान लाठी लिए पीछे नहीं घूमते। वे जिसकी रक्षा करना चाहते है उसे उत्तम बुद्धि दे देते हैं।
सशक्त समाज एवं राष्ट्र के रूप में अपने को परिणत देखने की आकाँक्षा करने वाले प्रत्येक देशभक्त एवं धर्म प्रेमी के लिए यह आवश्यक है कि इन त्रुटियों पर विचार करे, उनके कारण होने वाली क्षति को समझे और नव निर्माण के लिए कुछ करने की आवश्यकता अनुभव करे। वर्तमान स्थिति को ज्यों की त्यों बनाये रखकर हम प्रगति की ओर बढ़ न सकेंगे। मार्ग के रोड़ों को हटाये बिना और कोई गति नहीं। इसके लिए उपाय सोचना और उसे कार्यान्वित करने के लिए अग्रसर होना नितांत आवश्यक है। इस आवश्यकता की पूर्ति आज के प्रबुद्ध एवं विचारशील लोगों को ही करनी पड़ेगी।