श्रद्धा अभिव्यक्ति की कसौटी

February 1964

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युग-निर्माण योजना की सफलता-असफलता इस बात पर निर्भर है कि इस विचारधारा एवं कार्यपद्धति को अपनाने के लिए कितने व्यक्ति अग्रसर होते हैं। संसार की आबादी 3 अरब के करीब है। विभिन्न देशों में निवास करने वाले विभिन्न भाषा-भाषी एवं धर्मावलम्बी लोगों तक इस महान मिशन का विस्तार करना है तो उसके लिए जनशक्ति की आवश्यकता पड़ेगी ही। बुद्ध धर्म का सारे एशिया में प्रसार उस समय के लाखों भिक्षुकों द्वारा ही सम्पन्न हुआ था। आज ईसाई धर्म संसार की लगभग आधी जनसंख्या को अपने आँचल में ढंक चुका है इसका श्रेय भी क्रिश्चियन मिशन के लाखों धर्म प्रचारकों और कार्य-कर्ताओं को ही है। युग-निर्माण का मिशन भी यदि सफल होना होगा तो उसे भी निश्चित रूप से प्रबुद्ध मनः क्षेत्र के आदर्श वादी नर-नारायणों की ही जरूरत पड़ेगी।

इस आवश्यकता की पूर्ति के लिए कई उपायों का अवलम्बन करना पड़ेगा पर सबसे प्रारम्भिक उपाय यह है कि इस विचारधारा से अधिकाधिक लोग परिचित हों, उसका महत्व समझें और प्रस्तुत मार्ग पर चलने के लिए आवश्यक प्रेरणा एवं उत्साह प्राप्त करें। यह आवश्यकता पूरी करने का इस समय एकमात्र उपाय ‘अखण्ड-ज्योति’ का विस्तार ही सामने है। अखण्ड-ज्योति के सदस्य गत वर्ष 30 हजार थे। अब इस वर्ष उस संख्या को एक लाख तक पहुँचा देने का लक्ष्य रखा गया है। एक लाख परिवार यदि नियमित रूप से इस विचारधारा को अपनाने लगे तो यह आशा की जा सकती है कि हम प्रगति को ओर सचमुच ही चल रहे हैं। युग-निर्माण एक कल्पना न रहकर वस्तुस्थिति बन रहा है या नहीं, इसका प्रमाण हम उसके सदस्यों की संख्या को देखकर भी प्राप्त कर सकते हैं।

रजत-जयन्ती कार्यक्रमों में दो कार्य अत्यन्त महत्वपूर्ण माने गये हैं। (1) परिवार की संख्या वृद्धि, (2) कर्मठ सदस्यों का नियमित रूप से समयदान। अन्य समस्त गतिविधियाँ इन दोनों से ही सम्बन्धित हैं। वसन्त-पंचमी का आयोजन वहाँ बहुत ही सफल रहा, जहाँ स्वजनों ने उसके लिए उत्साहपूर्वक समयदान दिया। जो आलस्य में बैठे रहे, संकोच और झेंप से ग्रसित रहे वे बहुत समर्थ होते हुए भी कुछ न कर सके। आगे भी जो होना जाना है वह इस बात पर निर्भर रहेगा कि इस महान अभियान में किसने कितना समय दिया। यह कार्य धन से चलने वाला नहीं है। इसलिए धन की कोई अपील भी किसी से नहीं की जा रही है। युग-निर्माण के लिए एक ही आवश्यकता है - “भावनाशील लोगों का समय।” यह मिल गया तो समझना चाहिए कि सारे साधन जुट गये।

प्रसन्नता की बात है कि अखण्ड-ज्योति परिवार के प्रायः सभी विचारशील लोगों ने कुछ समय दान नियमित रूप से युग-निर्माण यज्ञ के लिए देते रहने का संकल्प किया है। एक से दस योजना के अंतर्गत लोगों के घरों पर जा जा कर साहित्य एवं वाणी के माध्यम से योजना का संदेश सुनाना भी उनने आरम्भ कर दिया है। पर यह कार्य अभी मन्द उत्साह के साथ ही अग्रसर हो रहा है। हमारी इच्छा है कि परिवार का प्रत्येक सदस्य थोड़ा-बहुत समय नियमित रूप से लगाने की बात सोचे और अपने व्यस्त कार्यक्रम में से भी कुछ समय इस पुनीत कार्य में लगाने के लिए त्याग, उदारता और साहसपूर्वक कदम बढावें। हम तीस हजार व्यक्ति यदि एक घण्टा भी नित्य इस कार्य के लिए समय दिया करें तो लगभग 4 हजार पूरा दिन पूरा समय देने वाले कार्यकर्ताओं को उद्देश्य पूर्ण हो सकता है। हमारे थोड़े उत्साह पर 4 हजार अवैतनिक प्रगतिशील कार्यकर्ताओं की एक बड़ी सेना खड़ी हो सकती है। पर यदि आलस्य और अवसाद ही छाया रहा तो युग-निर्माण योजना भी कागज की नाव ही सिद्ध होगी। समस्या बहुत ही गम्भीर और आवश्यक है। हमारे एक-दो घण्टा नित्य देने न देने पर इस महान अभियान का भविष्य बनना-बिगड़ना निर्भर है। हम में से प्रत्येक को विचार करना चाहिए कि युग की- विश्व मानव की- अत्यन्त जटिल एवं महत्वपूर्ण समस्या को सुलझाने के लिए हम इतना-सा त्याग कर सकने में समर्थ होते हैं या नहीं? यह उत्तर ही योजना के भाग्य का निर्णायक होगा।

दूसरी बात है कि अखण्ड-ज्योति परिवार का- युग-निर्माण योजना के सदस्यों का विस्तार। यदि इस एक बात की ही उपेक्षा कर दी जाय तो रजत-जयन्ती का तीन चौथाई महत्व समाप्त हो जाएगा। हम जितने थोड़े से लोग इस समय संगठन के अंतर्गत हैं यदि उतने ही बने रहे तो युग-निर्माण एवं विश्व-कल्याण की बात सोचना भी मूर्खतापूर्ण होगा। अपना परिवार इस वर्ष तीन गुना तो हो ही जाना चाहिए। इस महत्वपूर्ण तथ्य की गरिमा का अनुभव करते हुए कितने ही भावनाशील परिजन 250, 108, 25 अखण्ड-ज्योति के नये सदस्य बनाने की प्रतिज्ञा लेकर उसे पूरा करने के लिए उत्साहपूर्वक जुट गये हैं। कई व्यक्तियों ने 25 व्यक्तियों एवं संस्थाओं की लिस्ट भेजकर उनका चन्दा अपने पास से दिया है और एक वर्ष के लिए उपहार में पत्रिकाएं भिजवाई हैं। कई ने अपने स्वजन, सम्बन्धी, कन्या, जामाता, पुत्र, मित्र आदि को सुविकसित, सुसंस्कृत बनाने की कामना से उन्हें अपने पास के पत्रिकाएं चालू कराई हैं। दान का यही श्रेष्ठ तरीका है। कई सम्पन्न एवं प्रभावशाली लोग मिल-जुल कर एक डेपुटेशन के रूप में अपने-अपने नगरों और समीपवर्ती क्षेत्रों में भ्रमण कर रहे हैं। उन्हें आशा है कि वे आशा-जनक संख्या में नये सदस्य बना सकेंगे। पुराने सदस्यों से भी वे लोग पत्रिका का चंदा वसूल करते आ रहे हैं। इस प्रकार की सूचनाएं भारी संख्या में मिल रही है।

आशा यह की गई है कि प्रत्येक भावनाशील परिवार को संपर्क में आने वाले व्यक्तियों में से कम से कम 10 ग्राहक बनाने का प्रयत्न करना चाहिए और रजत-जयन्ती की सार्थक श्रद्धांजलि का मूल्यवान प्रमाण प्रस्तुत करना चाहिए। कार्य की सुविधा के लिए 10-10 पन्ने की ग्राहक बनाने की रसीद-बहियों छपा ली गई हैं, जो कुछ थोड़े से स्वजनों को गतमास भेज दी गई थी। जिन्हें उत्साह हो वे सभी परिजन इस प्रकार की रसीद बहियाँ मंगा सकते हैं और उनके आधार पर ‘अखण्ड-ज्योति’ के सदस्य बनाने के कार्यक्रम में निष्ठा एवं उत्साहपूर्वक लग सकते हैं। यह कार्य इस पूरे वर्ष चलता रहना चाहिए। सन् 64 रजत-जयन्ती वर्ष है। इसमें निरन्तर प्रयत्न करते रहा जाय और हर महीने एकादो नए सदस्य बनाने में भी सफलता मिलती रहे तो इस वर्ष में अपना परिवार बहुत विस्तृत एवं सुदृढ़ हो सकता है। यह सफलता युग-निर्माण की प्रत्यक्ष सफलता ही मानी जा सकती है। इस प्रगति के आधार पर युग-निर्माण आन्दोलन की समस्त प्रगतियों की व्यवस्था सहज ही बन सकती है।

जहाँ वसन्त-पंचमी के दिन रजत-जयन्ती नहीं मनाई जा सकी, वहाँ इस वर्ष की प्रथम छमाही में उसे मना लेना चाहिए। अगले किसी महीने की शुक्लपक्ष की पंचमी या अन्य किसी शुभ दिन वैसा ही सामूहिक आयोजन किया जाना चाहिए जैसा अधिकाँश स्थानों पर गत वसन्त-पंचमी को मना लिया गया। हमें विश्वास है कि अखण्ड-ज्योति का एक भी सदस्य न बचेगा जो रजत-जयन्ती का आयोजन किसी न किसी रूप में मना कर अपनी श्रद्धा अभिव्यक्त न करे।

इस वर्ष परिवार को कई महत्वपूर्ण कार्य करने हैं, अपने परिवार की संख्या वृद्धि इनमें से प्रमुख कार्य है। क्योंकि आध्यात्मिक क्रान्ति को विश्व-व्यापी बनाने के लिए उसके लिए समर्थक और सहायक तो चाहिए ही। इसलिए जनवरी से जून तक सभी सदस्यों को अपनी सामर्थ्य भर यह प्रयत्न करते रहना चाहिए। इसके उपरान्त सामाजिक क्रान्ति का सूत्रपात करने के लिए, विवाहों में होने वाले अपव्यय का उन्मूलन करने के लिए सुगठित एवं व्यापक आँदोलन की व्यवस्था बनाई जायगी। पिछले पृष्ठों पर इस सम्बन्ध में कुछ चर्चा की गई है। इस सम्बन्ध में अगले अंकों में, और भी प्रकाश डाला जायगा और परिजनों को इसके लिए प्रेरणा दी जायगी कि वे अगले तीन-चार महीनों में अपनी मनोभूमि इस योग्य तैयार कर लें कि उनके सहयोग से हिंदू-समाज को कलंकित और विपन्न बनाने वाली इस हत्यारी प्रथा का पूतना, ताड़का और सूर्पणखा की तरह काला मुँह किया जा सके। अखण्ड-ज्योति परिवार के लोग इस आदर्श का मार्ग-दर्शन करके सारे देश को एक नई दिशा देंगे और संघर्ष में जो कष्ट उठाना पड़ता है उसके लिए त्याग और बलिदान करके भव्य-समाज की नव्य रचना की भूमिका प्रस्तुत करेंगे। राजनैतिक क्रान्ति की- स्वराज्य की- लड़ाई में त्यागी, बलिदानी वीरों की तरह सामाजिक क्रान्ति की दिशा में प्रथम मोर्चा अपने परिवार के जिम्मे ही रहने वाला है। गान्धी जी के 79 साथियों ने धरसाना पर नमक बनाने की चढ़ाई करते हुए स्वतन्त्रता-सत्याग्रह का आरम्भ किया था आगे वह देश-व्यापी बना और अन्ततः स्वराज्य लेकर ही पूर्ण हुआ। इतिहास की वही पुनरावृत्ति अपना परिवार आदर्श विवाहों का नया स्वरूप समाज के सामने रखते हुए प्रस्तुत करेगा। उसकी मानसिक तैयारी हमें इसी छमाही में कर लेनी चाहिए। जून से इसे क्रियात्मक रूप दिया जाने लगेगा।

रजत-जयन्ती एक दिन मनाये जाने वाला त्यौहार मात्र न माना जाय। उससे हर परिजन प्रेरणा प्राप्त करे। नियमित रूप से युग-निर्माण के लिए समय देते रहने का व्रत लेना ही इस पुण्य-पर्व को मनाने की सच्ची श्रद्धांजलि माना जा सकता है। जयन्ती उत्सव तो छोटे-बड़े रूप में इस छमाही में किसी-न-किसी दिन प्रत्येक परिजन को मना ही लेना चाहिए।


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