जवानी फूल है और बुढ़ापा फल। दोनों की अपनी-अपनी खूबी है और अपना-अपना आनंद। एक को रंग की पिचकारी कहा जाय तो दूसरे को रस का कलश कहना चाहिए। फूल की यह चाहना व्यर्थ है कि यह फल न बने, जिस स्थिति में आज है सदा उसी में बना रहे। इसी प्रकार फल की यह आकाँक्षा बेकार है कि उसे सदा फूल ही बना रहना चाहिए था। कुदरत की हर करतूत में उसकी अपनी खूबी भरी हुई है।
-विन्स्टन चर्चिल
जिसके द्वारा ‘स्व’ आत्मा व परमात्मा का ज्ञान प्राप्त किया जा सके और जिसके द्वारा अभ्युदय निःश्रेयस की प्राप्ति की जा सके वही सच्चा स्वाध्याय है। अतएव प्रत्येक मनुष्य का कर्त्तव्य है कि वह अच्छे ग्रन्थों, सदाचार प्रवर्त्तक पत्र-पत्रिकाओं एवं सत्प्रेरणादायी पुस्तकों का सदैव स्वाध्याय करता रहे। महाभारत के शान्तिपर्व में कहा गया है-’नित्यं स्वाध्यायशीलश्च दुर्गाख्याति तरन्तिते’- नित्य स्वाध्याय करने वाला व्यक्ति दुःखों से पार हो जाता है।
स्वाध्याय ब्रह्मचर्य पालन में सहायक है। स्वाध्याय से चरित्र निर्माण से भी सहायता मिलती है। इसके द्वारा दुराचारी सदाचारी और व्यभिचारी भी ब्रह्मचारी बन जाता है। अतः यदि आप समुन्नत होना चाहते हैं अपने जीवन को पवित्र, शुद्ध और निर्मल बनाना चाहते हैं तो आलस्य और प्रमाद को छोड़कर नित्य सद्ग्रन्थों के स्वाध्याय का आज से ही संकल्प कीजिए और उसका दृढ़ता से पालन कीजिए।