रजत-जयन्ती उत्सव आयोजन
‘अखण्ड-ज्योति’ का रजत-जयन्ती पर्व ता.19 जनवरी (वसन्त-पंचमी) को भारतवर्ष तथा विदेशों में बड़े भावनापूर्ण वातावरण में मनाया गया। प्राप्त सूचनाओं के अनुसार केवल 2 हजार सदस्य ही ऐसे हैं जिनने या तो सूचना नहीं भेजी या वे इस आयोजन को कारणवश मना नहीं सके। शेष 28 हजार ने अपनी ज्ञान-माता ‘अखण्ड- ज्योति’ के प्रति श्रद्धाँजलि अर्पित करने में जो उत्साह दिखाया उसके प्राप्त समाचारों से स्पष्ट होता है कि परिवार के प्रत्येक परिजन का मन अपने इस प्रकाशपूर्ण प्रेरणा केन्द्र के प्रति कितना अधिक श्रद्धा एवं सद्भावना से ओतप्रोत है।
ता. 13 से 19 तक के रजत-जयन्ती सप्ताह में प्रायः सभी परिजनों ने कम से कम एक घण्टा और अधिक से अधिक पाँच घण्टा समय नित्य लगाकर ‘अखण्ड ज्योति’ का मिशन सफल होने के लिये ईश्वर उपासना की। लगभग आधे व्यक्ति ऐसे रहे जिनने गायत्री जप अनुष्ठान किये और अपने परिवार तथा परिचय के लोगों से कराये। शेष आधे लोगों ने अपनी-अपनी मान्यताओं के अनुरूप उपासना इसी उद्देश्य के लिए की। कुछ समय पूर्व अपना संगठन गायत्री उपासकों तक ही सीमित था पर अब उसका क्षेत्र व्यापक बना दिया गया है। इसलिए गायत्री को प्रधान रखते हुये भी अन्य विधियों से उपासना करने को भी अपने ही कार्यक्षेत्र का एक अंग माना जाता है। इस सप्ताह में गायत्री जप तो 10 अरब के करीब ही हो सका पर अन्य मन्त्रों द्वारा ईश्वर उपासना की गणना 20 अरब से ऊपर निकल गई। इसी बहाने भगवान के भजन का इतना बड़ा आयोजन हो सका। यह बड़ी प्रसन्नता की बात है। इससे संसार के सूक्ष्म वातावरण में अधिक सात्विकता, पवित्रता, एवं सद्भावना की सृष्टि होना सुनिश्चित है।
वसन्त पंचमी ता. 19 जनवरी को लगभग 7000 स्थानों में सामूहिक हवन हुए। जिनमें ‘अखण्ड-ज्योति’ के सदस्यों और पाठकों ने पच्चीस-पच्चीस आहुतियाँ दी। अखण्ड धृत दीप उस दिन इन सभी जगह रखा गया। दीपक को अपने मिशन का प्रतीक मानकर सभी स्वजनों ने उसके आगे पुष्पाँजलि अर्पित की और श्रद्धा से मस्तक झुकाया। रात्रि को उत्सव स्थान पर सामूहिक रूप में दिवाली की गई और परिजनों ने अपने-अपने घरों पर कम से कम 25-25 दीपक जलाये। प्रवचनों द्वारा उपस्थित जनता को ‘अखण्ड-ज्योति’ की प्रकाश प्रेरणा- युगनिर्माण योजना का उद्देश्य, स्वरूप एवं कार्यक्रम समझाया गया। ‘युग-निर्माण सत्संकल्प’ को एक प्रमुख व्यक्ति ने पढ़ा और उपस्थित लोगों ने दुहराया। युग-निर्माण सत्संकल्प की करीब एक लाख प्रतियाँ लोगों ने वितरित की। सितम्बर 62 का संकल्प व्याख्या अंक और जून 63 का कार्यक्रम अंक दोनों का सेट संभ्रान्त लोगों को भेंट कर युग-निर्माण योजना का परिचय उन्हें कराया।
उस दिन अपने व्यक्तिगत जीवन का आदर्श बनाने के लिए परिवार के प्रत्येक परिजन ने अपने अन्दर कोई नया विचार या कार्यक्रम आरम्भ किया। नशेबाजी, जुआ, माँसाहार, व्यभिचार, बेईमानी जैसे पाप ‘अखण्ड-ज्योति’ के पाठक बहुत पहले ही छोड़ चुके हैं। निषेधात्मक आन्दोलन गायत्री परिवार के दिनों से ही चल रहा है। अब निर्माणात्मक आन्दोलन का शुभारम्भ है। (1) मीठा बोलने, (2) धैर्य और आशा को अपनाकर सदैव मुस्कराते रहने, (3) अपकारों को भुलाने और उपकारों को स्मरण रखने, (4) आलस्य त्यागकर निश्चित दिनचर्या के अनुरूप उत्साहपूर्वक संलग्न रहने (5) रात को जल्दी सोने और प्रातः जल्दी उठने नित्य व्यायाम करने (6) अधिकार की उपेक्षा और कर्त्तव्य की तत्परता का ध्यान रखने (7) शरीर, वस्त्र, घर और सामान को स्वच्छ सुव्यवस्थित रखने (8) जीवन निर्माण की प्रेरणा एवं मार्गदर्शन करने वाले साहित्य का नित्य स्वाध्याय करने (9) नित्य सोते समय दिन भर के कार्यों और विचारों का लेखा-जोखा लेकर दूसरे दिन उसमें सुधार करने की व्यवस्था बना कर सोने (10) पतिव्रत धर्म और पत्नीव्रत का परिपूर्ण निष्ठा के साथ पालन करने (11) किसी के प्रति द्वेष दुर्भाव रखकर आत्मीयता की दृष्टि रखने जैसी अनेक सत्प्रवृत्तियों का अभ्यास उसी दिन से आरम्भ कर देने की प्रतिज्ञा ली। विश्वास है कि यह प्रतिज्ञायें निभेंगी और परिजनों का जीवन इन आदर्शों के अनुरूप दिन-दिन अधिक उत्कृष्ट बनता चला जायगा।
रचनात्मक कार्यक्रमों का व्यक्तिगत और सामूहिक कार्यक्रम लोगों ने अपनी स्थिति के अनुरूप बनाया। व्यक्तिगत रचनात्मक कार्यों में परिवार निर्माण का कार्यक्रम प्रधान था (1) अपने घर में पूजा-कक्ष की स्थापना और घर के सब लोगों को कम से कम पाँच मिनट उपासना करने के लिये तैयार करने का प्रयत्न (2) छोटों को भी ‘तू’ न कहकर ‘तुम’ या ‘आप’ शब्दों में संबोधन (3) बड़ों के नित्य चरणस्पर्श की परम्परा का आरम्भ (4) नित्य परिवार गोष्ठी का आयोजन जिसमें अशिक्षितों को शिक्षा, शिक्षितों को उसके शिक्षण की पूछताछ तथा कहानी एवं समाचारों के आधार पर नैतिक शिक्षण। पारिवारिक समस्याओं का हल खोजने के लिए विचार विनिमय (5) घर में शिक्षितों को जीवन निर्माण साहित्य नियमित रूप से पढ़ने की अभिरुचि एवं आदत उत्पन्न करना, अशिक्षितों को सुनाने की व्यवस्था करना (6) अन्न की बर्बादी को रोकना, थाली में झूठन न छोड़ना, सप्ताह में एक दिन उपवास (7) सप्ताह में एक दिन घर की भली प्रकार सफाई और नित्य हर वस्तु को यथा स्थान स्वच्छ ढंग से रखने की आदत (8) सादगी, मितव्ययिता व्यवस्था नियमितता, सामूहिकता, सहिष्णुता, श्रमशीलता और मधुरता को स्वभाव में सम्मिलित करने का परिवार के प्रत्येक परिजन को अभ्यास रखना (9) आहार में सात्विकता की अभिवृद्धि, ब्रह्मचर्य का अधिकाधिक पालन (10) संसार में सत्प्रवृत्तियों के पुष्प प्रसार के लिए अपनी आमदनी का एक अंश नियमित रूप से धर्म पेटी में जमा करना। इन दस कार्यक्रमों के आधार पर परिवार निर्माण के रचनात्मक कार्यक्रमों में जो लोग लगे हैं उनके परिवार का निश्चय ही कायाकल्प होगा। वे यदि धैर्य और प्रेमपूर्वक उत्साह के साथ इस कार्यक्रम को चलाते रहेंगे तो उनके घरों में जल्दी ही स्वर्णीय वातावरण परिलक्षित होने लगेगा।
सामूहिक रचनात्मक कार्यों में (1) प्रौढ़ पाठशालाओं और रात्रि पाठशालाओं की स्थापना (2) घरों पर सत्साहित्य पहुँचाने और वापिस लाने की व्यवस्था और इस माध्यम से लोगों तक युग निर्माण की विचारधारा को फैलाना (3) रामायण कथा का नियमित क्रम आरम्भ करके श्रोताओं को जीवन निर्माण की शिक्षा देना (4) प्रेरणा प्रद कविता, संगीत, कीर्तन, भजन एवं गायत्री का प्रसार (5) नगर की दीवारों को आदर्श वाक्यों से बोलती पुस्तक का रूप देना (6) शाक, फल और फूलों के पेड़-पौधे उगाने का आन्दोलन (7) ‘एक से दस’ की योजना के अनुसार प्रत्येक परिजन द्वारा दस व्यक्तियों को निरन्तर प्रेरणा देते रहने का उत्तरदायित्व निभाना (8) व्यायाम, शारीरिक श्रम, आसन, प्राणायाम एवं प्राकृतिक चिकित्सा शिक्षण (9) सादगी एवं स्वच्छता का प्रसार (10) परिवार के सदस्यों का जन्मदिन, संस्कार एवं पर्व मनाने के सामूहिक आयोजनों की व्यवस्था। वसन्त पंचमी, गायत्री जयन्ती, गुरु पूर्णिमा एवं दोनों नवरात्रियों के अवसर पर कुछ विशेष, धर्मानुष्ठान, उत्सव आयोजन का प्रबन्ध।
यह छोटे रचनात्मक कार्यक्रम प्रायः सभी शाखा केन्द्रों ने किसी न किसी रूप में आरम्भ कर दिये हैं। आरम्भ में छोटा अभ्यास करते हुए परिजनों को सार्वजनिक कार्यक्रमों का अभ्यास हो जायगा तो फिर बड़े कार्यक्रमों और आन्दोलनों को हाथ में लिया जायगा। हत्यारी, दहेज प्रथा, और विवाहों के समय फूँकी जाने वाली धन की होली हिन्दू जाति को जर्जर करने वाली सब से भयंकर तपेदिक एवं कोढ़ जैसी बीमारी है। बाल-विवाह, पर्दा, ऊँच-नीच, मृत्यु भोज, पशुबलि, अन्धविश्वास जैसी कितनी ही सामाजिक कुप्रथायें मौजूद हैं इनका उन्मूलन करने के लिए हमें बहुत कुछ करना होगा। नशेबाजी, असंयम, आलस्य बेईमानी, निष्ठुरता, स्वार्थपरता, कृतघ्नता, अशिष्टता नास्तिकता जैसे अगणित पाप दोष, व्यक्तिगत जीवन में गहराई तक प्रविष्ट हो चुके हैं उनको उखाड़ फेंकने के लिए भी बड़े कदम उठाने पड़ेंगे। प्रत्येक कार्य शक्ति के आधार पर ही संभव होता है। इसलिए शक्ति संचय और अभ्यास अनुभव की दृष्टि से छोटे रचनात्मक कार्यक्रमों पर ही अभी जोर दिया जा रहा है सो ठीक है। प्रसन्नता की बात है कि लगभग 5 हजार युग -निर्माण केन्द्रों ने इस प्रकार के छोटे-छोटे सामूहिक रचनात्मक कार्यक्रम आरम्भ कर दिये हैं।
रजत-जयन्ती को साधारण धर्मोत्सव का रूप न देकर उसे युग निर्माण आन्दोलन की नव जीवन संचार की पुण्य प्रक्रिया का रूप दिया गया यह बहुत ही महत्वपूर्ण है। हर्षोत्सव आये दिन मनाये जाते रहते है पर उनका मूल्य तात्कालिक मनोरंजन एवं प्रसन्नता की अभिव्यक्ति मात्र होती हुई ‘अखण्ड ज्योति’ की रजत-जयन्ती का स्वरूप बिखरा हुआ रहा, किसी एक स्थान पर बहुत बड़ा सम्मेलन समारोह नहीं हुआ, फिर भी उसके माध्यम से जो ठोस कार्य बन पड़ा वह भारी से भारी उत्सव द्वारा भी संभव न था। इस दृष्टि से इस आयोजन को पूर्ण सफल माना जा सकता है।
मान, प्रतिष्ठा, यश और नामवरी, की आपाधापी सार्वजनिक आन्दोलनों और कार्यक्रमों को नष्ट करने में सबसे घातक विष का काम करती है। आरम्भ में थोड़ी प्रशंसा के लालच से लोग कुछ काम करते देखे जाते हैं। पर जब वह नशा उन्हें नहीं मिलता तो हाथ-पाँव शिथिल कर बैठते हैं। कई बार तो ईर्ष्या वश उस मिशन को हानि भी पहुँचाते हैं जिनने उन्हें आरम्भ में प्रशंसा प्रदान की थी। इन कटु अनुभव के कारण युग-निर्माण आन्दोलन को मान-बड़ाई, नामवरी, एवं नेतागीरी से सर्वथा मुक्त रखा गया है। प्रशंसा के लालच से कोई व्यक्ति इसमें न आने पावे- आदर्श के प्रति आस्था रखते हुए मूक सेवकों की तरह लोग इस धर्म प्रवृत्ति में भाग ले। इस उद्देश्य से यह व्यवस्था की गई है कि इस आन्दोलन में बढ़-चढ़ कर काम करने वालों की भी प्रशंसा न छापी जाय। इसी कारण लगभग 7 हजार केन्द्रों में 28 हजार परिजनों द्वारा आयोजित जो विशाल कार्यक्रम रजत-जयन्ती के अवसर पर संपन्न हुआ उसके अलग-अलग समाचार नहीं छापे जा रहे हैं। छापना संभव भी नहीं था। एक-एक लाइन में भी एक केन्द्र का कार्य छापा जाय तो ‘अखण्ड-ज्योति’ के वर्तमान कलेवर से दूने पृष्ठ उसी के लिए चाहिये। इतना कागज मंगाने की अपेक्षा काम की बात ही ‘अखण्ड-ज्योति’ में छपे इस दृष्टि से जयन्ती समारोह के सम्बन्ध में ज्ञात सूचनाओं का साराँश उपरोक्त पंक्तियों में छाप दिया गया है।