सन् 1919 की बात है। रूस के जन नेता लेनिन पर उसके शत्रुओं ने घातक आक्रमण किया और वे घायल होकर रोग शय्या पर गिर पड़े। अभी ठीक तरह अच्छे भी नहीं हो पाये थे कि एक महत्वपूर्ण रेलवे लाइन टूट गई। उसकी तुरन्त मरम्मत किया जाना आवश्यक था। देशभक्त लोगों ने वैतनिक मजदूरों पर निर्भर रहना पर्याप्त न समझा और वे बहुत बड़ी संख्या में अवैतनिक रूप में इस मरम्मत को जल्दी पूरा करने में लग गये। काम बड़ा था फिर भी जल्दी पूरा हो गया।
काम पूरा होने पर जब हर्षोत्सव हुआ तो देखा कि लेनिन मामूली कुली की तरह उन्हीं मजदूरों की पंक्ति में बैठे थे। रुग्णता के कारण दुर्बल रहते हुए भी लठ्ठे ढोने का कड़ा काम बराबर करते रहे और अपने साथियों में उत्साह की भावना भरते रहे।
आश्चर्यचकित लोगों ने पूछा-आप जैसे जन-नेता को अपने स्वास्थ्य की चिन्ता करते हुए इतना कठिन काम नहीं करना चाहिए था। लेनिन ने हँसते हुए कहा-जो इतना भी न कर सके उसे जन-नेता कौन कहेगा?