मधु संचय (Kavita)

February 1964

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तेरी जय मानव की जय है, हार न कर स्वीकार,

निज पौरुष से तोड़ नियति का दृढ़तर कारागार,

आत्म-चेतना से तू निर्भय पग को रख गतिवान!

यदि निश्चित है इष्ट-पन्थ तो भय न किसी का मान!-विद्यावती मिश्र

जीवन एक श्लोक है जिसका-

सबसे सीधा भाष्य प्यार है।

प्राण-प्राण जिसकी धड़कन में-

कण्ठ-कण्ठ जिसकी पुकार है॥

प्रथम शब्द पर्याय जनम का

और अन्तिम संदर्भ मरण का।

एक यही है मन्त्र कि जिसको-

दुहराता जग बार-बार हैं॥

लेकिन दुहराया जब मैंने तेरा नाम न जाने तो क्यों?

नीरज तो बदनाम हो गया-प्रीति मगर सरनाम हो गई!

-नीरज

दिव्य ध्येय की ओर तपस्वी,

जीवन भर अविचल चलता है।

सज-धज कर आवें आकर्षण,

पग-पग पर झूमते प्रलोभन,

होकर सबसे विमुख बटोही,

पथ पर सम्हल-सम्हल बढ़ता है।

अमर-तत्व की अमिट साधना,

प्राणों में उत्सर्ग कामना,

जीवन का शाश्वत व्रत लेकर,

साधक हँस कण-कण गलता है।

सफल-विफल और आशा-निराशा,

इनकी ओर कहाँ जिज्ञासा,

बीहड़ता में राह बनाता,

हारी मचल-मचल चलता है।

पतझर हो झंझावातों में,

जग के घातों प्रतिघातों में,

सुमन लुटाता सुमन सिहरती

निर्जनता में भी खिलता है।

-अज्ञात

सिद्धि से पहले कभी जो बीच में रुकते नहीं,

जो कभी दबकर किसी के सामने झुकते नहीं,

जो हिमालय से अटल हैं, सत्य पर हिलते नहीं,

आग पर चलते हुए भी, जो चरण जलते नहीं,

उन पगों के रज-कणों का, नाम केवल जिंदगी है।

विश्व में परिवर्तनों का, नाम केवल जिंदगी है॥

-रामवतार त्यागी

अब जाग उठो, अब जाग उठो,

युग-युग से सोये ओ मानव!

खिल चुकों होलियाँ शोणित की,

विध्वंस हो चुके देव-भवन।

लुट चुकीं रमणियाँ सुत-पति की,

रोती बिलखाती भरे नयन॥

माँ आज कर रहीं मूक-रुदन,

बँध कारा में जंजीरों सें।

तुम देख रहे हँस रहे किन्तु,

वह माँग रहीं कुछ वीरों से॥

कर मुक्त, तोड़ यह सब बन्धन,

युग-युग से सोये ओ मानव।

-रामस्वरूप खरे

लायेंगे, सतयुग लायेंगे।

पाप-ताप का नाश करेंगे, पुण्य प्रभा प्रकटायेंगें॥

दुनिया हुई पुरानी, इसको फिर से नई बसायेंगे।

सत्य प्रेम की लिये पताका, घर-घर अलख जगायेंगे॥

काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह को, अब हम दूर भगायेंगे।

स्वार्थ भावना नष्ट करेंगे, सेवा पथ अपनायेंगे॥

दुराचार, दुर्भाव, द्वेष का, नाम निशान मिटायेंगे।

दानवता का दमन करेंगे, मानवता फैलायेंगे॥

तम निद्रा में सोई जनता को, झकझोर जगायेंगे।

अन्धकार को दूर करेंगे, ज्ञान सूर्य चमकायेंगे।।

भ्रम में भटक रहीं दुनिया को, सच्ची राह दिखायेंगे।

अन्य स्वर्ग की नहीं कामना, यहीं स्वर्ग ले आयेंगे॥

-रामकुमार भारतीय


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