घबराहट की कीमत

February 1964

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किसी समय एक जंगल में गधे ही गधे रहते थे। पूरी आजादी से रहते, भर पेट खाते पीते और मौज करते थे।

एक लोमड़ी को मजाक सुझा। उसने मुंह लटकाकर गधों से कहा- मैं चिन्ता से मरी जा रही हूँ और तुम इस तरह मौज कर रहे हो। तुम्हें पता नहीं कितना बड़ा संकट सिर पर आ पहुँचा है?

गधों ने कहा-दीदी, भला हुआ क्या, बात तो बताओ। लोमड़ी ने कहा-मैं अपने कानों सुनकर और आँखों देखकर आई हूँ। मछलियों ने एक बड़ी सेना बना ली है और वे अब तुम्हारे ऊपर चढ़ाई करने ही वाली हैं। उनके सामने तुम्हारा ठहर सकना कैसे संभव होगा?

गधे असमंजस में पड़ गये। उन्होंने सोचा व्यर्थ जान गँवाने के क्या लाभ? चलो कहीं ओर चलो। जंगल छोड़कर वे गाँव की ओर चल पड़े।

इस प्रकार घबराये हुए गधों को देखकर गाँव के धोबी ने उनका खूब सत्कार किया। अपने छप्पर में आश्रय दिया और गले में रस्सी डालकर खूँटे में बाँधते हुए कहा-डरने की जरा भी जरूरत नहीं। मछलियों से मैं भुगत लूँगा। तुम मेरे बाड़े में निर्भयतापूर्वक रहो। केवल मेरा थोड़ा-सा बोझा ढोना पड़ा करेगा।

गधों की घबराहट दूर तो हुई पर उसकी कीमत महंगी चुकानी पड़ी।


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