श्री रामकृष्ण परमहंस के उपदेश

October 1941

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मुट्ठी में लगे हुए आम को यदि दबाया जाय तो उसका कुछ रस बाहर निकल पड़ता है पर गुठली और छिलका हाथ में ही लगा रहता है। कष्ट पड़ने पर सत्पुरुषों की आँखों से आँसू तो निकल पड़ते हैं पर उनका धर्म विचलित नहीं होता।

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सुई की नोंक में डोरे को तब पिरोया जा सकता है जब डोरे के सिरे को बंटकर नोंकदार बना लिया जाय। ईश्वर के मार्ग में वे प्रवेश कर सकते हैं जो अपने मन को विनम्र और निर्मल बना लेते हैं।

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तराजू का वही पलड़ा झुका रहेगा जिसमें बोझ अधिक होगा। नम्र और सरल वह होगा जिसके पास विद्या और विवेक का बोझ होगा।

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जिस घड़े के पेंदे में छोटा सा भी छेद हो जाता है उसमें पानी नहीं ठहरता। जिस मनुष्य का आचरण बुरा है उसमें सद्गुण नहीं ठहरते।

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कसौटी पर घिसने से मालूम हो जाता है कि सोना खोटा है या खरा। संकट के समय विचलित न होने पर पता चलता है कि मनुष्य बुरा है या भला।

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अग्नि के सत्संग से काला कोयला, सुनहरी रंग का हो जाता है। सत्पुरुषों के सत्संग से अज्ञान की कालिमा मिट जाती है, और हृदय में ज्ञान का प्रकाश होने लगता है।

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फिजूल शक नहीं करना चाहिये। हमेशा प्रसन्न रहिये। चित्त को कोमल, तथा हर्षान्वित बनाओ।


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