वैदिक कथाओं का रहस्य

October 1941

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(ले. श्री पं. छज्जूराम शास्त्री विद्यासागर)

ब्रह्मा का अपनी पुत्री के साथ बलात्कार करना, इसके लिये उसका आकाश तक पीछा करना, वेदों में प्रसिद्ध है। देवराज इन्द्र का अहिल्या का सतीत्व नष्ट करना, भी एक वैदिक कथा है। हम यहाँ इन्हीं दोनों कथाओं का, कुमारिल के अनुसार, सत्यार्थ बतलाते हैं।

ऐतरेय ब्राह्मण में लिखा है- ‘प्रजापतिवैस्वाँ दुहितरमभ्यध्यायत्’ ब्रह्माजी ने अपनी पुत्री के साथ बलात्कार करने के लिए पीछा किया। ऋक्संहिता के 5,2,13 तथा 1,5,13 में भी ब्रह्मा के उक्त ‘सुतानुगमन’ का वर्णन है, तैतरेय ब्राह्मण में पूर्वोक्त स्थान पर यह भी वर्णन मिलता है कि ब्रह्मा जी ने जब अपनी पुत्री का पीछा किया तब वह रागान्ध होकर लाल हो गई लज्जावश आकाश में भागी। ‘ब्रह्माजी ने भी मृग होकर उसका पीछा नहीं छोड़ा। यह कथा पुराणों में और भी अधिक सरस भाषा में लिखी गई है। स्रोतों में भी इस कथा का भक्ति के साथ उल्लेख किया गया है। महिम्रः स्रोत के कर्ता पुष्प दन्त ने बाराहपुराण के आधार पर यह भी जोड़ दिया है, कि जब ब्रह्माजी की यह अनीत शंकर जी से नहीं देखी गई, तब उन्होंने एक शिकारी का रूप धारण कर उस मृग रूपी ब्रह्मा का अनुसरण किया। कुमारिल ने ब्रह्मा के इस कलंक का आश्वलायन सूत्र की टीका में तथा वार्तिक में भी युक्ति-युक्ति अर्थ करके परिमार्जन किया है। वे लिखते हैं-

“सूर्य मण्डल अपने प्रकाश और उष्णता द्वारा प्रजाओं का पालन करता है। अतः सूर्य ही प्रजापति है। अरुणोदय बेला में वह उषा (उषःकाल) के पीछे ही आता देख पड़ता है। उषा-बेला ही उसकी पुत्री है। क्योंकि सूर्य के आने से ही वह उत्पन्न होती है। उसमें वह अपने अरुण किरण रूप बीज का निक्षेप करता है। इसलिये सूर्य के आने से उषा काल के साथ कवियों ने स्त्री पुरुष व्यवहार का औपचारिक रूपेण अतिशयोक्ति रूपेण वर्णन किया है।

इन्द्र अहिल्या का जार कैसे है, इसका भी रहस्य सुनिये। ऋक्संहिता के ‘उदीरय पित राजा रमाभग 7,6,10 वे मंत्र में इन्द्र को अहिल्या का जार कहा गया है। तैतरेयारण्यक 1-12 में इसी जार पद को लेकर अनेक विशेषणों के साथ इन्द्र को सम्बोधन किया गया है- यथा “गौतमब्रुवाण,” इत्यादि। आगे बाल्मीकि जी ने इस कथा का जैसा सुमनोहर विस्तृत वर्णन किया है वह पाठकों को ज्ञात ही है। इन कथाओं को आलंकारिक रहस्य का समझना अत्यन्त कठिन होने से आज बहुत से अल्पज्ञ लोग वैदिक धर्म पर टीका-टिप्पणी करने लगते हैं और भ्रम में पड़ जाते हैं। जो देवराज है, यज्ञाँश का प्रथम भागी है, उसकी यह घृणित पर स्त्री लम्पटता को देख कर किस श्रद्धालु का हृदय दुविधा में न पड़ जायेगा? हमको कुमारिल जैसे परागामी विद्वान् हरदम कहाँ मिल सकते हैं? कुमारिल ने बड़ी खूबी के साथ इसके आलंकारिक पर्दे को हटाया है वे लिखते हैं- अहिल्या नाम राधिका है। उसका जार सूर्य है। सूर्य को भी इन्द्र कहते हैं। जो महान् तेजस्वी तथा परमैर्श्वयशाली हो उन को इन्द्र कह सकते हैं। ‘अहनि लीयते इत्य-अहल्या’ इस निरुक्ति से दिन के प्रकाश में जो लीन हो उसका नाम है अहिल्या। रात्रि, प्रकाश होते ही दिन में लीन हो जाती है। इसलिये रात्रि ही अहिल्या है। इसका सूर्य द्वारा जारण क्षय होता है। अतः सूर्य उसका जार है। पर स्त्री व्यभिचार से नहीं, कितना स्पष्ट तथा युक्ति-युक्ति अर्थ है।


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