ध्येय की सिद्धि

October 1941

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(कुमार गोविन्दानुज)

-प्रवाह के साथ दीप बहते आ रहे थे।

-उनकी मंशा थी कि समुद्र में जाना और वहाँ के छिपे हुए रत्नों को ऊपर लाने के लिए प्रकाश दिखाना।

-आते आते कुछ बुझ गये, कुछ डूब गए, कुछ फूट गए।

-बचे हुए आ रहे थे, आगे बढ़ रहे थे।

-उनके सामने एक आदर्श था।

-बीच में एक चट्टान आड़े आई और वे वहीं अटक गए।

-उनको लगा-”हाय हमारा ध्येय?”

-वहीं से प्रकाश दिखाने का उन्होंने निश्चय किया।

-उसी समय एक रत्नों से भरा जहाज आ रहा था।

-वह उस बड़ी चट्टान से टकरा कर नष्ट हो जाता, मगर दीपों के प्रकाश से बच गया।

-और थोड़ी ही देर में वे दीप भी बुझ गये।

-बुझते समय-मरते समय वे सोच रहे थे-”ध्येय की सिद्धि हो गई?” - नई दुनिया


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