सूक्ष्म शरीर की शक्ति

October 1941

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इस लोक में जब किसी प्राणी को मर जाने का फतवा दे दिया जाता है और उसकी अंत्येष्टि क्रिया पूरी कर दी जाती है, तब भी यथार्थतः वह मरता नहीं और इसी प्रकार जीवित रहता है जैसे कि मृत्यु से पूर्व था। प्याज के पत्तों को अगर ऊपर से हटाते जाएं तो उस में भीतर और पर्त रह जाते हैं। मानवीय शरीरों के कई पर्त हैं, जिन्हें सूक्ष्म, कारण और लिंग शरीरों के नाम से पुकारते हैं। मृत्यु के बाद स्थूल शरीर तो मर जाता है, परन्तु सूक्ष्म शरीर बना रहता है। आगामी जीवन की तैयारी के लिये अक्सर मृत प्राणी निद्रित अवस्था में पड़े रहते हैं, ताकि विश्राम कर के भविष्य के लिये शक्ति सम्पादन कर लें, किन्तु जिस तरह कई कारणों से कभी-कभी रात्रि भी जागते हुए व्यतीत हो जाती है, उसी तरह कुछ मृत व्यक्ति भी चैतन्य बने रहते हैं और जीवित प्राणियों के कार्यों में बड़ी दिलचस्पी लेते हैं।

यही चैतन्य शरीर भूत प्रेतों के रूप में परिचय देते हैं। कभी-कभी इनके कार्य ऐसे होते हैं जिन से हैरत में पड़ जाना होता है। भारतवासी प्राचीन काल से सूक्ष्म शरीरों की सत्ता स्वीकार करते आ रहे हैं। किन्तु पश्चिमीय जड़ विज्ञान केवल स्थूल शरीर को ही जीव मानता है। इसके अतिरिक्त किसी सूक्ष्म शरीर या आत्मा का होना नहीं मानता था, पर अब प्रत्यक्ष अनुभवों ने उसे भी इस बात के लिये मजबूर कर दिया है कि मरणोत्तर जीवन को स्वीकार करे।

कुछ दिन पूर्व सेन फ्राँसिस्को से निकलने वाले एक्झानिर नामक पत्र में इस सम्बंध में एक महत्वपूर्ण समाचार छापा था, उसका भावानुवाद नीचे दिया जाता है-

“टाम्स वेल्टन स्टेन फोर्ड, नामक एक धनी महानुभाव जो आस्ट्रेलिया के मेल्बोर्न नगर में रहते थे, संग्रह करने की रुचि के कारण ख्याति प्राप्त कर चुके थे। उन्होंने अपने अजायब घर में देश विदेश की ऐसी-ऐसी वस्तुएं संग्रह की थीं, जिनका साधारणतः प्राप्त करना कष्टसाध्य ही नहीं, असाध्य भी था। इस बात के प्रमाण मौजूद हैं कि यह दुर्लभ वस्तुएं उन्होंने प्रेतात्माओं की सहायता से एकत्रित की थीं।

स्टेन फोर्ड के नगर में ही एक सी- बेइली नाम लुहार रहता था, जिसने प्रेतात्माओं से सम्बंध स्थापित करने में बड़ी सफलता प्राप्त की थी। मि. फोर्ड उससे मिले और जब इस बात का विश्वास हो गया कि सचमुच इसके साथ प्रेत रहते हैं, तो उन्होंने उससे लुहारी छुड़वा कर ऊंची तनुख्वाह पर अपने यहाँ नौकर रख लिया। उस लुहार ने फोर्ड साहब को भी अपने प्रयोगों में शामिल किया। एकान्त और अंधेरे कमरे में जब प्रयोग किये जाते तो कमरे के कोने, छत, फर्श या बाहर से अनेक प्रकार के शब्द एवं प्रकाश प्रकट होते हैं। वे आत्माएं मनुष्यों की तरह बातचीत भी करतीं और अपने शरीरों सहित प्रकट भी होतीं। यह बात जब चारों ओर फैलने लगी तो बहुत से जिज्ञासु उसे देखने आते। चूँकि इस कार्य में कोई छल कपट का व्यवहार न था, इसलिये दर्शकों को समस्त सन्देहों को निवारण करने का पूरा-पूरा अवसर दिया जाता और वे अन्ततःपूर्ण रुप से सन्तुष्ट होकर मृतात्माओं के अस्तित्व पर विश्वास करते हुए घर लौट जाते, इच्छानुसार प्रेतों से दूर-दूर की वस्तुएं भी मंगाई जाती और एक मिनट से कम समय में उन्हें लाकर हाजिर कर देते। एक बड़े जलसे में दर्शकों ने बड़ी विचित्र चीजें माँगी। वे सभी एक क्षण भर में लाकर उपस्थित की गईं। एक दर्शक ने हिन्दुस्तान में ही पैदा होने वाली चिड़िया माँगी। प्रेत ने घोंसलों समेत उन चिड़ियाओं को इतनी संख्या में पटका कि सारा कमरा उनकी चें चें से गूँज उठा। उसी तरह हजारों वर्ष पुराने सिक्के, ब्रह्म के माणिक्य काशी के जीवित कछुए, राजहंस के जोड़े, समुद्र के खारी पानी से भीगी हुई शार्क मछली, भारत में खाई जाने वाली गरम रोटी यह सब वस्तुएं हाजिर कर दीं। जिनसे दर्शकों को पूरी विश्वास हो गया कि यह प्रेत का ही कार्य है।

इन चमत्कारों की चर्चा उस देश के ऊंचे लोगों तक पहुँची, और उनकी विज्ञान परिषद ने फोर्ड और बेइली को इस बात के लिये ललकारा कि यदि उनकी बात सच है तो एक विशाल प्रदर्शनी में उनके सामने सिद्ध कर दिखावें। फोर्ड ने उनकी चुनौती स्वीकार कर ली और मेल्बार्न नगर की उस सब से बड़ी प्रदर्शनी में जिसमें देशभर के प्रख्यात तार्किक वैज्ञानिक, अन्वेषक और शोधक उपस्थित थे, प्रेतों के करतब दिखाये और उनकी माँगी हुई ऐसी वस्तुएं जिनके बारे में किसी को ख्याल तक न था, सभा मंडप में लाकर उपस्थित कर दी गईं। इन वस्तुओं में दूर-दूर देशों के वह अखबार भी थे, जो ठीक उसी समय उन स्थानों में छप रहे थे। इन चमत्कारों को देखकर शीया पेरेली, काउंट बाउडी डिवेस्मे, प्रोफेसर फरल कमेर, जिग्नोरा, बरजीनिया पेगे, प्रो. रोसी डिगिस्टी नियानी, सरीखे गण्यमान्य पुरुषों को यह बात मुक्त कंठ से स्वीकार करनी पड़ी कि इसमें रत्ती भर भी छल कपट नहीं हैं, और यह किसी अदृश्य शक्ति का ही काम है।

एक फोर्ड या बेइली ही नहीं, अनेक महानुभाव प्रेतात्माओं के कार्यों का प्रत्यक्ष अनुभव कर चुके हैं। आत्मा को न मानने वाले जड़ विज्ञान के अन्वेषकों में से भी जिन लोगों ने इस तत्व का अन्वेषण किया है उनमें से अधिकाँश को अपना अविश्वास छोड़ना पड़ा है। डार्विन का साथी कार्यकर्ता और पदार्थ विज्ञान का अग्रणी विद्वान आल्फ्रेट रसेल वालेस, इंग्लैंड के रायल सोसाइटी की सदस्य और फ्राँस की एकेडेमी आफ साइन्स से र्स्वण पदक प्राप्त एवं रेडियो मीटर, आथियोसकोप सरीखे यंत्रों के आविष्कारक प्रोफेसर विलयम क्रुम्स, हार्वट विद्यालय के प्रोफेसर जेम्स, कोलम्बिया विद्यालय के प्रोफेसर हिर लोप, खगोल विद्या के आचार्य केमिल फ्लेमेरियोन, आयलैण्ड के वैज्ञानिक प्रो. बेरेट आदि अनेक महानुभावों को उनके अपने अनुभवों ने इस बात को मानने के लिये मजबूर कर दिया है, कि मनुष्य का सूक्ष्म शरीर भी होता है। और उनकी सामर्थ अदभुत एवं सत्यता से परिपूर्ण होती है।

निकट भविष्य में जितनी-जितनी इस विज्ञान की खोज होती जायेगी, सूक्ष्म शरीर के सम्बंध में अद्भुत सत्यता का प्रकाश हमारे सामने आता जायेगा।


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