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October 1941

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यदि मनुष्य सीखना चाहे, तो उसकी हर एक गलती कुछ न कुछ सिखा देती है।

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पानी की एक बूँद यदि गरम लोहे पर पड़ जायेगी, तो उसका नाम निशाना भी न रहेगा। अगर वह केले के पत्र पर पड़ जायेगी तो मोती के सदृश शोभा देगी। और वही स्वाति के संयोग से सीप में गिर कर असली मोती बन जाती है। अतः जैसी संगति मिलती है वैसा ही असर आता है।

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जिसको तुम सत्कार्य समझते हो, उसको पूरा करके दिखाओ, इसमें यह न देखो, कि इसमें हमारी बुराई है अथवा प्रशंसा है। दूसरा कोई चाहे, कुछ समझता रहे।

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उच्च कोटि की उदारता हिम्मत ही है। अतः साहसी मनुष्य अपनी अमूल्य चीजों को भी मुक्त हस्त होकर खर्च कर देता है।

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ग्रंथों के प्रेमी मनुष्य को दयालु, हितैषी, उपदेशक, विनोदी साथियों की कमी न रहेगी।

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साक्षात पीयूष रस संसार का प्रेम-व्यवहार ही है जिसे दो, वही पक्ष लेने लगता है।

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मूर्खों का ही व्यापार लड़ाई करना है।


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