रचयिता-श्री कल्याण कुमार जैन “शशि”
1.
उत्थान पतन का भेद जान
जीवन मृत्यु का कर निदान
केवल जीवन, न मान
हठ वाद छोड़, जड़ वाद त्याग
उठ, सोये जीवन जाग जाग
2.
जब जड़ता में जीवन विकास
पा रहा पनप कर पूर्ण हास
तू शक्ति केन्द्र है कर प्रयास
विकसा कर नव साहस पराग
उठ, सोये जीवन जाग जाग।
3.
यदि साहस सोता है सँभाल
जग डूब रहा है तो उछाल
बन दिव्य ऐतिहासिक मिसाल
कायर जीवन में लगा आग।
उठ, सोये जीवन जाग जाग।
4.
यह सोने की वेला न भात
आँखें खोलो देखो प्रभात
अब सोना। है विश्वासघात
विश्वासघात है पतन नाग।
उठ सोये जीवन जाग जाग।