(ले. पी. जगन्नाथराव नायडू, नागपुर)
लोग क्या कहते हैं? इसके आधार पर किसी कार्य की भलाई-बुराई का निर्णय नहीं किया जा सकता। क्योंकि कई बार लोग अच्छे कार्यों की बुराई करते हैं और बुरों की भलाई। कारण भले बुरे की वास्तविक पहिचान हर किसी को नहीं होती। हम जो काम करें, उसके लिए यह न देखें कि कौन क्या कहता है? वरन् यह सोचें कि हमारी आत्मा इसके लिये क्या कहती है। यदि आत्मा गवाही दे कि हम जो कार्य कर रहे हैं उत्तम है और हमारी बुद्धि निस्वार्थ है, तो बिना किसी की परवाह किये हुए हमें अपने कार्य में प्रवृत्त रहना चाहिए।
यदि शुभ मार्ग में बाधाएं आती हों और लोग विरोध करते हों तो घबराये मत और न ऐसा सोचिए कि हमारे साथ कोई नहीं, हम अकेले हैं। शुभ कार्य करने वाला कभी अकेला नहीं है। अदृश्य लोक में महान पुरुषों की प्रबल शक्तियाँ विचरण करती रहती हैं, वे हमें उत्तम पथ दिखती हैं, तथा हमारी सहायता के लिए दौड़ पड़ती हैं और इतना साहस भर देती हैं कि एक बड़ी सेना का बल उसके सामने तुच्छ है। चोर घर के लोगों के खाँस देने से ही डर कर भाग जाता है, किन्तु धर्मात्मा मनुष्य मृत्यु के सामने भी छाती खोल कर अड़ा रहता है। सत्यनिष्ठ की पीठ पर परमेश्वर है। धर्मात्मा मनुष्य किसी भी प्रकार न तो अकेला है और न निर्बल। क्योंकि अनन्त शक्ति का भण्डार तो उसके हृदय में भरा पड़ा है।
हम किसी की परवाह क्यों करें? यदि हम सत्य और धर्म के मार्ग पर आरुढ़ हैं, यदि हमारा आत्मा पवित्र है, तो हमें निर्भयतापूर्वक अपने पथ पर आगे बढ़ते जाना चाहिए और इस बात की ओर कुछ चिन्ता न करनी चाहिए कि कौन क्या कहता है।