बुरे विचारों का निवारण

October 1941

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(ले- श्री रामकरणसिंह वैद्य, जफरापुर)

जीव पूर्व जन्मों में अनेक प्रकार के शुभ अशुभ कार्य कर चुका होता है और भले बुरे दोनों ही प्रकार के संस्कार उसके गुप्त मन पर अंकित रहते हैं, तदनुसार दोनों प्रकार के विचार मन में उठा करते हैं। ऐसे मनुष्य मिलना कठिन है, जिनके मन में कभी बुरे विचार उत्पन्न ही न होते हों। बुरे विचार उठें, तो निराश न होना चाहिए, वरन् उन्हें काबू में करने का प्रयत्न करना चाहिए। यदि विवेक का बल हो, तो बुरे विचारों के अनुसार कार्य नहीं होने पाता और वे मन में उत्पन्न होकर वहीं नष्ट हो जाते हैं। किन्तु यदि विवेक निर्बल हो और इन्द्रियों की लालसा बढ़ी हुई हो, तो उस कुसंग के साथ वे बुरे विचार बढ़ जाते हैं और छोटे से बड़ा रूप धारण कर लेते हैं। तरंग स्वयं बहुत छोटी वस्तु है, पर संगति से समुद्र बन जाती है। इसी प्रकार एक छोटा सा बुरा विचार यदि अनियंत्रित होकर कुसंग में पड़ जाय, तो समुद्र हो सकता है और मनुष्य को अपने में डुबा कर नष्ट कर सकता है। बुरे विचारों को बाह्य परिस्थितियाँ भी बड़ा सहारा देती हैं। बुरे स्थान, दृश्य, साहित्य, चित्र और जीव यह सभी कुविचारों को उत्तेजित करने में सहायक होते हैं।

जो मनुष्य अपने जीवन को ऊंचा उठाना चाहते हैं, उन्हें चाहिए कि सतर्कतापूर्वक ‘आत्मनिरीक्षण’ करते रहें, जब कोई बुरा विचार उत्पन्न हो रहा हो, तो उसे तुरन्त ही यहाँ से हटा कर उसके स्थान पर शुभ संकल्प आरोपित करना चाहिए। जिस प्रकार बिच्छू के कपड़े पर चढ़ते ही उसे हटाने का अविलम्ब प्रयत्न करते हैं, उसी प्रकार बुरे विचार को मन में उत्पन्न होते ही हटा देना चाहिए, तभी हम जीवन लक्ष तक पहुँच सकेंगे।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles