हजरत मुहम्मद साहब

October 1941

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(मेल मिलाप)

हजरत मुहम्मद साहब अक्सर दुआ (प्रार्थना) में फरमाया करते थे- ‘खुदाबन्द, मुझे गरीब जिन्दा रख, गरीब उठा और गरीबों ही के साथ मेरा हश्र कर।’ हजरत आयशा ने पूछा ‘या रसूल अल्लाह, क्यों?’ उन्होंने उत्तर दिया-’इसलिये कि ये गरीब दौलतमंदों से पहले जन्नत में जायेंगे।’ फिर फरमाया-’ऐ आयशा, किसी गरीब को अपने दरवाजे से मायूस यानी बिना कुछ दिये न फेरो, गो छुहारे का एक टुकड़ा ही क्यों न हो। ऐ आयशा, गरीबों से मुहब्बत रखो और इनको अपने से नजदीक करो तो खुदा भी तुमको अपने से नजदीक करेगा।’

एक बार एक आदमी ने हजरत मुहम्मद साहब से मिलने की इजाजत चाही। आपने फरमाया-’अच्छा आने दो, वह अपने कबीले का अच्छा आदमी नहीं है।’ लेकिन जब वह आपकी खिदमत में हाजिर हुआ तो आपने निहायत नरमी के साथ उससे बातचीत की। हजरत आयशा को इस पर ताज्जुब हुआ। उन्होंने पूछा-’या रसूल अल्लाह, आप तो इसको अच्छा नहीं समझते थे, फिर ऐसी नरमी और प्रेम के साथ आपने उससे बातें की?’ आपने फरमाया-’खुदा के नजदीक सबसे बुरा शख्स वह है जिसकी बदजुबानी की वजह से लोग उससे मिलना-जुलना छोड़ दें।’


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