गुप्त बातों का जानना

October 1941

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हमारा ज्ञान बहुत सीमित है। केवल सुनी हुई और अनुभव में आई हुई बातों की ही जानकारी हमें होती है, परन्तु संसार में और भी अनेक जानने योग्य बातें मौजूद हैं, जिन्हें ज्ञान इन्द्रियों की सहायता से नहीं जाना जा सकता विश्व में बहुत सारा ज्ञान छिपा पड़ा है, जिनमें समर्थ है वे उसे अनायास ही जान लेते हैं, और लाभ उठाते हैं। सभी ज्योतिषी, भविष्यवक्ता, मुक प्रश्न बताने वाले, मन की बात जानने वाले और भूत भविष्य की जानकारी रखने वाले झूठे दम्भी होते हों, सो बात नहीं है, इनमें से कितनों में बड़ी विचित्र सामर्थ्य होती है, और वे अपने ज्ञान से बड़ा आश्चर्य उत्पन्न कर देते हैं।

जिस अवस्था में दिव्य ज्ञान का अनुभव होता है उसे समाधि अथवा क्लेरोवायन्स कहते हैं। क्लेरोवायन्स का तात्पर्य है स्पष्ट देखना। धुँधली ज्ञानेन्द्रियाँ जिस बात को नहीं देख पातीं उन्हें जानने योग्य सूक्ष्म इन्द्रियों को यदि जागृत कर लिया जाय यह अवस्था प्राप्त हो सकती है। बाह्य मस्तिष्क से घुड़ दौड़, तर्क शृंखला, और अस्थिरता एवं साँसारिक झंझटों का बहुत अधिक दबाव जब मन के ऊपर पड़ता है, तो वह धुँधला हो जाता है, किन्तु यदि हम अन्तर्मुखी होने का अभ्यास करें, बाहरी झंझटों की अपेक्षा आत्मसाधना में अधिक मन लगावें, तो हम समाधि अवस्था के निकट होते जा सकते हैं।

योग की वह समाधि जिसमें रक्त का संचालन और श्वास प्रश्वास क्रिया बंद हो जाने पर भी मनुष्य जीवित रहता है, यहाँ उस अवस्था का उल्लेख नहीं किया जा रहा है क्योंकि वह बहुत ही ऊंची चीज है, और साधना में पारंगत साधुओं को छोड़कर साधारण लोगों के लिये संभव नहीं है, छोटी श्रेणी की समाधि साधारण लोगों को भी प्राप्त हो जाती है, और उसके लिये संज्ञाहीन होने की कोई आवश्यकता नहीं है। हठयोग की पुस्तकों में समाधि की सात कक्षाएं बताई हैं। उनकी कुछ आरंभिक कक्षाएं थोड़ा सा अभ्यास करने पर कई साधकों को प्राप्त हो जाती हैं। कितने ही उदाहरण ऐसे देखे जाते हैं, जिनमें अशिक्षित, असभ्य और अज्ञानी मनुष्यों में यह सामर्थ्य जागृत होती है, और वे गुप्त बातों को आश्चर्यजनक रीति से बताते हैं।

मानवीय विद्युत तेज (औरा) विचार कम्पनों का प्रवाह, अन्य मनुष्य के मन का अनुभव, छिपी हुई वस्तुओं का ज्ञान, किसी वस्तु की पूर्व परंपरा, भावी घटनाओं का पूर्वाभास आदि का अनुभव यह उसी मनुष्य को प्रगट होगा, जिसे पूर्व संस्कारों के आधार पर अथवा आधुनिक अभ्यास के द्वारा समाधि की कुछ स्थिति प्राप्त होती होगी। यह स्थिति जितनी धुँधली होगी, उतने ही अस्पष्ट अनुभव आवेंगे, और जितनी साफ होती जायेगी उतना ही स्वच्छ ज्ञान होगा।

यह योग्यता मनुष्य को स्वभावतः प्राप्त है, उसको कहीं बाहर से प्राप्त नहीं करना है, केवल उसके ऊपर जमे हुए मैल को हटाना है। इसलिये क्लेरोवायन्स के अभ्यास के लिये किसी कठिन अभ्यास की जरूरत नहीं है। अन्तर्मुखी होना, आत्मचिन्तन में समय लगाना। ईश्वराराधना, पूजा, पाठ, जप, तप करना इनमें से अपने विश्वास के आधार पर जो कुछ भी अभ्यास सच्चे हृदय से और निष्ठापूर्वक किया जाय, वही इस मार्ग को खोलने में सहायक हो सकता है। चित्त की स्थिरता और हृदय की पवित्रता यह दो गुण इस दिशा में बहुत ही उत्तम सिद्ध होते हैं। दुर्गुणी और दुष्ट प्रकृति के लोग त्रिकाल में भी इस अवस्था को प्राप्त नहीं कर सकते।

कुछ हठ योगी इसलिये गाँजा, भाँग चरस, शराब आदि पीते हैं कि उनकी बाह्य चेतना निद्रित हो जाय और समाधि का आनन्द आने लगे। किन्तु भ्रम में उलझे रहने के अतिरिक्त उन्हें कुछ वास्तविक लाभ नहीं होता। बाह्य चेतना निद्रित कर लेना तब तक व्यर्थ है, जब तक कि आन्तरिक चेतना जागृत न हो, नशीली चीजों से आन्तरिक तत्वों का जागृत होना तो दूर रहा, उलटे वह जड़ता को प्राप्त हो जाते हैं, इसलिये साधकों को इस दृष्टि से मादक द्रव्यों का सेवन कदापि न करना चाहिये।

बाह्य चेतना को निद्रित करने का अच्छा मार्ग चित्त की एकाग्रता और आन्तरिक शान्ति ही हो सकती है। इसी के द्वारा सूक्ष्म इन्द्रियों का जागरण सम्भव है। जो इस विषय का अभ्यास करना चाहते हो उन्हें उचित है कि अपनी कोई प्रिय वस्तु चुन लें और बहुत समय तक उसी पर ध्यान जमाने का अभ्यास करें। जैसे आप को अपनी हीरे की अंगूठी प्रिय है, तो उसे सामने रख कर मन उस पर जमाइए और उसी के सम्बंध में चिन्तन कीजिए। दस पाँच मिनट प्रतिदिन इसका अभ्यास करने से अंगूठी और हीरे के सम्बंध में बहुत ही सूक्ष्म बातें ध्यान में आने लगेंगी। निरन्तर छः सप्ताह के अभ्यास से बहुत लाभ होगा।

आरंम्भिक अभ्यास किसी जड़ वस्तु पर से किया जा सकता है। छः सप्ताह बाद मानसिक ध्यान करना चाहिये, अपने इष्ट देव की मूर्ति का मानसिक ध्यान करने और उनके अंग-प्रत्यंगों को स्पष्ट देखने का अभ्यास करने से सूक्ष्म चेतना बहुत साफ होती जाती है और धीरे-धीरे अप्रत्यक्ष बातों की जानकारी बढ़ने लगती है। क्लेरोवायेन्स के लिये गाँजे का नशा नहीं आत्म साधना का नशा होना चाहिये। साँसारिक कार्य करते हुए भी यदि संसार से भूले रहें और आध्यात्मिक लोक में भ्रमण करने का अभ्यास डालें, तो यह दिव्य शक्ति हमें धीरे-धीरे प्राप्त हो सकती है। दूसरों के मन की बात जानने में, स्वभाव जानने में, इतिहास जानने में अपनी आरंभिक योग्यता की परीक्षा शुरू करनी चाहिए। पहले यदि एक चौथाई बातें ठीक निकलें तो हताश नहीं प्रसन्न होना चाहिए। जैसे-जैसे अभ्यास बढ़ता जायेगा, तिहाई, आधी, पौना बातें ठीक आने लगेंगी। एक दिन ऐसी अवस्था भी प्राप्त हो सकती है, जब विश्व की कोई बात गुप्त न रहेगी और प्रत्यक्ष पदार्थों की भाँति गुप्त पदार्थ स्पष्ट दिखाई देने लगेंगे।


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