भाग्यवान और अभागे

October 1941

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(ले.- ऋषि तिरुवल्लुवर)

कौन अभागा है और कौन भाग्यवान् है? इस की एक कसौटी मैं तुम्हें बताये देता हूँ। जो आदमी क्रियाशील है, उत्साही है, आशावान् है वह भाग्यवान है। भाग्य लक्ष्मी उसके घर रास्ता पूछती-पूछती खुद पहुँच जायेगी। सुस्ती, निद्रा, आलस्य प्रमोद, भूल जाना, काम को टालना, यह लक्षण जिनमें हैं समझ लो कि वह अभागे हैं उनके भाग्य की नौका अब तक डूबने ही वाली है। याद रखो आलस्य में दरिद्रता का और परिश्रम में लक्ष्मी का निवास है।

जिन्हें काम करने से प्रेम है वे सचमुच अमीर हैं। और निठल्ले? वे तो हाथ पाँव वाले मोहताज हैं। पैसा आज है कल चला जायेगा परन्तु क्रियाशीलता वह पारस है जो हर मौके पर लोहे को सोना बना देगी। धन्य है वे मनुष्य जिन्हें काम करना प्रिय है, जो कर्त्तव्य में निरत रहकर ही आनन्द का अनुभव करते हैं। उत्साही पुरुष असफलता से विचलित नहीं होता। हाथी के शरीर में जब तीर घुसते हैं तो वह पीछे नहीं हटता वरन् और अधिक दृढ़ता के साथ अपने कदम जमा जमा कर चलता है। भाग्य साथ न दे और असफल होना पड़े तो इसमें कुछ भी लज्जा की बात नहीं है। शर्म की बात यह है कि मनुष्य अपने कर्त्तव्य की अवहेलना करे और आलस्य में बैठा रहे। अखण्ड उत्साह-बस, शक्ति का यही मूल स्रोत है। जिसमें उत्साह नहीं वह तो चलता पुतला मात्र है।


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