सफल जीवन (कविता)

December 1940

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(श्री. शशि)

जीवन सफल वही होता है।

उछल-उछल जो सर्वनाश की टक्कर पर टक्कर सहता है।
नंगी खड्ग धार की अपने सीने पर चोटें सहता है॥

चाह नहीं, परवाह नहीं, कुछ आह नहीं, जिसके अंतर में।
चाहे आफत, महा प्रलय के, सौ तूफान उठें क्षण भर में॥

टुकड़े हों बोटी बोटी के, रोटी के पड़ जायें लाले।
कभी न लौटे निज मंजिल से और न भिक्षा-पात्र संभाले॥

किसी देश द्रोही के आगे, अपना मस्तक जो न झुकाये।
किसी खून के प्यासे को जो कभी न अपना खून पिलाये॥

देख!देख!! गढ्ढे का पानी सावन का बादल होता है।
जीवन सफल वही होता है॥

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