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December 1940

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जो पाप प्रकट हो जाते हैं वे बदनामी देकर नष्ट हो जाते हैं। इसलिये हिम्मत करके अपने पापों को प्रकट कर दो और बदनामी को सिर चढ़ाकर सुखी हो जाओ।

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जो अपने अच्छे कामों के बदले में धन्यवाद वाहवाही अथवा किसी और फल की चाह करता है वह बड़ा अभागा है। क्योंकि बहुमूल्य सत्कर्मों को थोड़ी कीमत पर बेचना चाहता है।

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लोगों को रुला कर जो सम्पत्ति इकट्ठी की जाती है वह आर्तस्वर से रोने की आवाज के साथ ही विदा हो जाती है। पर जो धर्म द्वारा संचित होती है वह बीच में किसी कारणवश क्षीण हो जाने पर भी अन्त में, खूब फलती-फूलती है।


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