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December 1940

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हम साधारण सी विपत्ति को देखकर धैर्य छोड़ देते हैं और किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाते हैं। उस समय हमें स्मरण करना चाहिये दूसरे लोग जो इससे भी हजारों गुनी विपत्तियों में पड़े हैं और उन्हें सह रहे हैं। इस विपत्ति के समय में भी जो सुविधाएं हमें प्राप्त हैं उनके लिये ईश्वर को धन्यवाद देना चाहिये क्योंकि दूसरे असंख्य मनुष्य उनसे भी वंचित हैं।

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जो सोचता है कि “मैं जीव हूँ” वह जीव है और जो सोचता है कि “मैं शिव हूँ” वह शिव है।

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जो आदमी दूसरों से घृणा करता है समझ लो कि वह ईश्वर से उतनी दूर है।

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जीवन तो वही है जो अनेकों को प्रकाश दे और प्रकाश उसी का नाम है जिसकी चमक से अनेकों के हृदय में आशा जाग उठे।


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