आगे के लिये बचाओ।

December 1940

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(इंजील के आधार पर)

एक धनवान मनुष्य था। उसे सब प्रकार के सुख, ऐश्वर्य प्राप्त थे। मखमली वस्त्र और सोने के जेवरों से उसकी देह सजी रहती थी। सारे दिन शौक मौज करने के अतिरिक्त उसके पास और कोई काम न था।

इलियाजर नामक एक कंगाल उसी धनवान का पड़ौसी था। वृद्धावस्था और बीमारी के कारण बेचारा कुछ कर नहीं सकता था इसलिए अपने धनवान पड़ौसी के द्वार पर जाता और उसकी मेज के नीचे भोजन के जो किनके गिर पड़ते उन्हें बीन-बीन कर पेट में डाल लेता। धनी के पास किसी बात की कमी न थी पर उसने कंगाल की हालत पर न तो कभी तरस खाया और न उसकी कुछ मदद की।

इलियाजर धर्मात्मा था। गरीब और अशक्त होने के कारण वह किसी की कुछ सेवा नहीं कर सकता था इससे उसे बड़ा दुख होता। उसके पाँवों में घाव हो गये थे। जब कभी वह कुत्तों को देखता तो उन्हें प्यार से बुलाता और अपने घाव उनके चाटने के लिये खोल देता। अपना थोड़ा सा रक्त माँस कुत्तों को दान करके वह अपने दुख को हलका कर लेता और अपने कष्टों के लिये प्रभु को धन्यवाद देता जिनके कारण वह ईश्वर को हर घड़ी याद करता रहता है।

समय आने पर इलियाजर मरा। थोड़े ही दिन बाद उस धनी को भी मरना पड़ा प्रेत लोक में दोनों ही पहुँचे। धनी को घोर पीड़ाओं से भरे नरक में रखा गया वहाँ वह असहनीय पीड़ायें सहने लगा। ममन्तिक कष्टों से वह तड़प रहा था कि उसकी निगाह दूसरी ओर गई। उसने देखा कि स्वर्ग के देवता इब्राहीम की गोद में इलियाजर बैठा हुआ है और विपुल ऐश्वर्यों का उपभोग कर रहा है।

धनी का गला भर आया। उसने चीखकर इब्राहीम से कहा-हे पिता! दया कर इलियाजर को मेरे पास भेजिये ताकि वह मेरे जलते हुये गले में कुछ पानी की बूँदें डाल दे मैं प्यास के मारे मरा जा रहा हूँ।

इब्राहीम ने कहा-पुत्र! प्रभु का न्याय बड़ा कठोर है उसमें पक्षपात को स्थान नहीं है। तू जीते जी अपनी सम्पत्ति पा चुका। अब अधिक तुझे कैसे मिल सकता है? काश, तूने उस समय बचा कर कुछ इस समय के लिये संचित किया होता तो आज इस तरह यहाँ न तड़पता।


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