अमुक चीज तुम्हें अच्छी नहीं लगती केवल इसी बुनियाद पर उसे बुरा मत मान लो और न उसके विनाश की चेष्टा करो। यह मत समझ बैठो कि तुम्हारे विचार सर्वथा भ्रमरहित हैं और तुम जो करना चाहते हो वही सर्वश्रेष्ठ है।
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दूसरों की अवनति करके, दूसरों का बुरा करके तुम अपनी उन्नति या भलाई कभी नहीं कर सकते। तुम्हारा मंगल उसी कार्य में होगा जिसमें दूसरों का मंगल भरा हो।
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