तलवार या प्रेम?

December 1940

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(श्री. बालेश्वर सिंह जी)

किसी पर विजय प्राप्त करने के लिये मनुष्य के पास दो ही साधन उपलब्ध हो सकते हैं। एक तलवार तथा दूसरा प्रेम।

तलवार से किसी को अपने वश में किया जा सकता है, उससे अपना आदेश मनवाया जा सकता है। किन्तु यह विजय क्षणिक है, इससे किसी के हृदय पर अधिकार नहीं जमाया जा सकता है। परास्त मनुष्य तभी तक अपने को परास्त समझता है जब तक वह निर्बल है और उसके पास ईंट का जवाब पत्थर से देने का साधन उपलब्ध नहीं है। वह भीतर ही भीतर ऐसे सुअवसर की प्रतीक्षा में रहता है जब वह अपने शत्रु से बदला लेने में अपने को समर्थ समझ सके। और एक न एक दिन उसे ऐसा अवसर मिल ही जाता है।

प्रेम से प्राप्त किया हुआ अधिकार स्थायी होता है। विजयी न अपने को विजयी समझता है और न विजित अपने को विजित। वे सदा के लिये सच्चे मित्र बन जाते है। एक के हृदय पर दूसरे का अटल अधिकार हो जाता है।

शक्तिशाली लोग तलवार का प्रयोग इसलिये करते हैं कि उनकी शक्ति को अपने काम में ला सके। यह कार्य प्रेम से भी हो सकता है। राम के साथ बानरों की असंख्य सेना, ईसा और बुद्ध के अनगित अनुयायी गान्धी के अनेक सत्याग्रही इस बात के साक्षी हैं कि प्रेम का बन्धन तलवार के भय से प्रबल है।

आप दूसरों को अपना सहायक बनाना चाहते हैं, उनकी शक्ति का उपयोग करना चाहते हैं, यश या ऐश्वर्य चाहते हैं तो प्रेम शस्त्र को अपनाइये यह तलवार की अपेक्षा सैंकड़ों गुनी शक्ति रखता है।


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