मैस्मरेजम की उच्च कक्षा

December 1940

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(प्रो. धीरेन्द्रनाथ चक्रवर्ती, बी. एस. सी.)

गत एक वर्ष से अखंड ज्योति के पाठको को मैस्मरेजम और प्राण विद्या की थोड़ी बहुत जानकारी लगातार हर अंक में कराता रहा हूँ। अब तक बताये गये अभ्यासों के अनुसार साधक अपने अन्दर आत्म विद्युत को जागृत कर सकते हैं और उसके द्वारा दूसरों की शारीरिक तथा मानसिक सेवा एवं अपनी मानसिक उन्नति कर सकते हैं। वह शक्ति रोग निवारण के लिए अद्भुत है। कितने ही भयंकर रोगों को इस शक्ति की सहायता से अपने तथा दूसरों के द्वारा अच्छा होता देखा है।

दूसरों को प्रभावित करना प्राण विद्या का कुछ ऊंचा दर्जा है। तन्त्र शास्त्रों में वशीकरण (किसी को अपने काबू में कर लेना उससे इच्छानुसार काम लेना) स्तम्भन (जड़वत् बना देना) मोहन (मोहित कर लेना) उच्चाटन (किसी स्थान पर से उखाड़ देना) पीड़न (बीमार कर देना या अन्य कष्ट देना) भ्रामन (भ्रम में डाल देना, पागल कर देना) मारण (प्राण ले लेना) आदि जिन क्रियाओं का वर्णन है उनकी क्रिया परकाया प्रवेश विधि से होती हैं। सिद्ध अपनी आत्मशक्ति को इतनी संतुलित कर लेता है कि उसके दूसरों के शरीर में चाहे जितनी मात्रा में प्रविष्ट कर दिया जाय। इस प्रकार का प्रेषण दूसरे व्यक्ति के शरीर और मन पर काबू पा लेता है जिसके आधार पर उसे भ्रान्त, मोहित तथा मृतक तक बनाया जा सकता है।

तन्वों में नीच और पापपूर्ण विधियाँ ही हों सो बात नहीं है। मूल शक्ति में कुछ दोष नहीं है। अच्छाई या बुराई तो उसके प्रयोग में है। सुई को कपड़े सीने के काम में लिया जाय तो सुन्दर वस्त्र बन सकते हैं किन्तु यदि उसे किसी की आंखों में घुसेड़ दिया जाय तो उसे अन्धा बनाया जा सकता है। इसमें शक्ति का कोई दोष नहीं। प्राण शक्ति जहाँ शाप का बल रखती है वहाँ वरदान की ताकत भी उसके अन्दर है। हमारे प्राचीन पुराण इतिहास ऐसी साक्षियों से भरे पड़े हैं। जो प्रमाणित करती हैं कि ऋषियों-उच्च आत्माओं की आन्तरिक आशीर्वादों से अद्भुत और अलौकिक कार्य भी हुये हैं। एक क्षण पूर्व जो व्यक्ति साधारण काम भी नहीं कर सकता था दूसरे ही क्षण वह कई गुना बलवान हो गया और जिन कार्यों में सफलता प्राप्त करके उसके लिये असंभव था उस कार्य को उसने पूरा कर डाला इस प्रकार के अनेक उदाहरण प्राप्त होते हैं।

बात यह है कि बलवान आत्मशक्ति वाले महापुरुष अपना प्राण बल कुछ अधिक मात्रा में पराई काया में प्रवेश कर देते हैं। बहुत ऊंचे आदमी तो भगवान शंकराचार्य की तरह अपनी शरीर को पूर्णता छोड़कर दूसरे मृतक शरीर में प्रवेश कर सकते हैं। पर यह बहुत ही ऊंची चीज है। पाठकों से इतने ऊंचे उठ जाने की अभी हमें आशा नहीं है और न स्वयं हमारी ही वहाँ तक गति है।

साधारण अभ्यासी इतना कर सकते हैं कि दूसरों के शरीर में अपना प्राण प्रवेश करके उसके बुरे विचारों, दूषित आदतों, रोगों, या कमजोरियों को दूर करें। क्योंकि यह सब विजातीय और अप्राकृतिक होने के कारण बहुत ही निर्बल और सुगमता से दूर होने वाले होते हैं। सत्य विचारों में दोषी विचारों की अपेक्षा हजारों गुनी दृढ़ता होती हैं इसलिए उन्हें कोई आसानी से नहीं डिगा सकता।

तुम कुछ दिनों के प्रयोग के बाद किन्हीं व्यक्तियों की कुटेवें छुड़ा सकते हो किन्तु किसी सती साध्वी स्त्री को सत्य से डिगाना चाहो, ईश्वर भक्ति एवं ईमानदारी आदि सद्गुणों से किसी को वंचित करना चाहो तो यह कार्य नहीं हो सकेगा। कुदरत की प्रबल शक्तियाँ तुम्हारे पाप पूर्व कार्य को अपनी टक्करों से कुचल डालेगी। इसलिए अखंड ज्योति के पाठको को हम प्राण विद्या द्वारा परकाया प्रवेश की एक नियत सीमा तक ही जाने देना चाहते हैं। दूसरों की बीमारियों को दूर किया जा सके, स्वयं निरोग रहा जा सके, बालकों या स्त्रियों पर शुभ संस्कार डाले जा सकें, लोगों के भ्रम या मानसिक दुर्बलता दूर की जा सके। कुटेवें छुड़ा जा सके, उच्च गुणों की ओर उत्साहित किया जा सके, बस इतनी सीमा साधारण अभ्यासियों के लिये काफी है। यह प्राण प्रवेश दूसरों को निद्रित करके, सजग अवस्था में, पास रहते हुए, दूर रहकर, सोते समय व अन्य सब परिस्थितियों में हो सकता है।

यह दुरूह और गुप्त विज्ञान हर किसी से कहने का नहीं है। जो अधिकारी हो वही इस विद्या से लाभ उठाएं इसलिये हमने निश्चय किया है कि आगे का विषय अखंड ज्योति में न छापा जाय और वह पुस्तक के रूप में अलग से प्रकाशित कर दिया जाय। पाठको को यह जानकर प्रसन्न होना चाहियें कि हमारी सलाह से अखंड ज्योति संपादक ने इस गुप्त विषय को हम लोगों के बीस वर्ष के अनुभव के आधार पर ‘प्राण चिकित्साविज्ञान’ और ‘परकाया-प्रवेश’ नामक पुस्तकों की रचना कर दी है। जो चाहें उनसे लाभ उठा सकते हैं।


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