(ले. श्री. आत्माराम देवकर, हटा, दमोह)
सुमन कोमल और सुगंधित होता है। सुमन का अर्थ सुन्दर स्वच्छ मन भी है। जो स्वामी तुलसीदास जी ने संतों के हृदय को जल के समान निर्मल और नवनीत (मक्खन) के समान कोमल बताया है। मक्खन अपने दुख से द्रवीभूत हो जाता है। जब तपाया जाय तभी पिघल उठता है। पर सज्जनों का हृदय दूसरों के दुख देखकर भी पिघल उठता है। कई पुष्पों में भी यह गुण होता है। वे संसार का वैभव और प्रकाश उल्लास देखकर हंसते हैं और उस पर कालिमा पुती देखकर मुरझा जाते हैं। कमल का फूल सूर्य निकलते ही खिल जाता है और रात्रि आते ही मुरझा जाता है इस प्रकार के पुष्पों को उच्च श्रेणी में गिना जाता है। उच्च श्रेणी का सुमन (सुन्दर मन) वही है जो दूसरों का वैभव देखकर प्रसन्न होता है और दीन दुखियों को देखकर दुखी होता है।
रामायण कहती है कि “संत हृदय नवनीत समाना। कहा कविन पै कहा न जाना॥ निज परिताप द्रवै नवनीता। पर दुख द्रवै सो संत पुनीता॥” पराये दुखों को देखकर भगवान बुद्ध की तरह जिसका अन्तस्थल रो पड़ता है वास्तव में वह सच्चा संत है। किसी का कष्ट देखकर जो आँसू निकलते हैं उसमें उसके सारे ताप घुलकर वह जाते है और अन्त स्थल परम पवित्र हो जाता।
ऐसे पवित्र सुमनों में मनमोहक सुगन्धि अपने आप आकर्षित हो जाती है। समुद्र में सम्मिलित होने के लिये नदियाँ अपने आप दौड़ पड़ती हैं। दयालु आत्मा में अन्य समस्त गुण अपने आप भर जाते हैं और वह वायु के साथ जब इधर-उधर फैलते हैं तो सुगन्ध कहलाते हैं। इसी सुगंध के आधार पर वे सुमन देवताओं के मस्तक पर चढ़ते हैं।
यदि तुम्हारा मन सुमन है तो उसमें निश्चय ही सद्गुणों की सुगंध भर जायगी और उस सुगंध पर संसार निछावर होगा।