चरित्र मनुष्य की निजी सम्पत्ति है। उसके सामने ऋद्धियाँ और सिद्धियाँ भी तुच्छ हैं। यह ज्ञान वैराग्य और भक्ति से भी परे है। संसार के सब सद्गुण एक ओर और चरित्र दूसरी ओर रख कर तोला जाय तो चरित्र का ही पलड़ा भारी रहेगा। चरित्र ही गुणों की जन्म भूमि है।
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पाप और बुराई से वैसे ही घृणा करो जैसे किसी भारी दुर्गन्ध से करते हो और भलाई से ऐसा ही प्रेम करो जैसे कि किसी सुन्दर वस्तु से करते हो।