माफ कर दो।

December 1940

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(अध्यापक जहूरवख्श)

हजरत अली हजरत मुहम्मद साहब के दामाद और मुसलमानों के चौथे खलीफा थे । अपनी अद्भुत वीरता, न्यायशीलता , दया और उदारता के कारण उनका नाम सदैव इतिहास के पृष्ठों पर चमकता रहेगा। परन्तु , यह संसार भी एक विचित्र पहेली है। इसमें हजरत अली -जैसे सज्जन को भी शत्रुओं से सामना करना पड़ा । उनके इन शत्रुओं में इब्न मुलजिम तो बड़ा ही भयानक निकला। उसने हजरत अली के प्राण लेकर ही शान्ति-लाभ किया। वह पहले उनके लश्कर में था और लड़- झगड़ कर भाग गया था।

एक दिन हजरत अली कूफा नगर की मस्जिद में सुबह की नमाज पढ़ रहे थे। जिस समय सब लोग सिजदा करने झुके, वहाँ सहसा इब्न मुलजिम आ पहुँचा। उसने झपटकर हजरत अली पर हमला किया और जहर की बुझी हुई तलवार से उनको तीन जगह घायल कर दिया।

नमाज खतम होते ही कुछ लोग तो हजरत अली को संभालने में लगे और कुछ लोग तो इब्न मुलजिम के पीछे दौड़े। थोड़ी दूर जाकर उन्होंने इब्न मुलजिम को पकड़ लिया और वे उसे हजरत अली के सामने ले आये। इसी समय लोग हजरत अली के लिये शरबत का प्याला तैयार करके लाये। हजरत ने फरमाया -“ यह शरबत पहले इब्न मुलजिम को पिलाओ। वह दौड़ते-दौड़ते हाँफने लगा है। और प्यासा मालूम होता है।”

घाव बहुत गहरे लगे थे। जब हजरत अली का अन्तिम समय निकट आ गया, तब उनके प्रेमियों ने उनसे पूछा-”आप अपने खूनी की बावत क्या हुक्म देते हैं?” उन्होंने जवाब दिया-”अगर मेरा कहना मानो, तो उसे माफ कर देना।”


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