पूज्य गुरुदेव ने अपना जीवनवृत्तांत न कभी लिखा, न किसी को बताया। जिनने पूछा, उन्हें टाल दिया। पर वह है सारा महत्वपूर्ण कि उसका एक-एक शब्द ह्रदयंगम करने योग्य है और एक-एक अक्षर पड़ने योग्य है।
अब गुरुदेव सूक्ष्मीकरण की भूमिका में प्रवेश कर रहे हैं। तो उनने उस जीवनवृत्तांत को स्वयं लिखा है। इसलिए कि जिज्ञासु आध्यात्मिक तत्त्वज्ञान के रहस्यों को गम्भीरतापूर्वक समझ सके और साधना से सिद्धि का यथार्थवादी रहस्य हस्तगत करके जिन्हें निहाल बनना है, बन सके।
जीवनवृत्तांत जून के आगामी अंक में छप सके, उतना ही सारगर्भित अंश लिखा गया है। यह पाठकों के हाथ में सदा की भांति जून के प्रथम सप्ताह में पहुँच जाएगा। जल्दी लेखन और जल्दी मुद्रण के कारण एक सप्ताह विलंब से प्रकाशित होने की आशंका है।
गुरुदेव से संबंधित व्यक्ति लगभग बीस लाख हैं। अखण्ड ज्योति उतनी नहीं छपती है। प्रतिपादन से यथासंभव जल्दी ही सभी को अवगत करा देने की इच्छा गुरुदेव की है। मौन-एकाकी-साधना एवं किसी से न मिलने के उनके निर्णय की स्थिति में अब यही एक मात्र माध्यम रह गया है। इन पंक्तियों में यही अनुरोध किया जा रहा है कि वर्तमान पाठक जून के अंक की अतिरिक्त तीन प्रतियाँ पाँच रुपया भेजकर और मँगा लें। एक अपनी, तीन अतिरिक्त। कुल तीन को संपर्क क्षेत्र में पढ़ाना आरंभ करें और न्यूनतम बीस विज्ञजनों को पढ़ाएँ। इसे गुरु पूर्णिमा के अवसर पर सौंपा गया विशेष उत्तरदायित्व समझें और पूरा करें।
नये पाठकों-विज्ञजनों पर स्थायी प्रभाव डालने की दृष्टि से यह और भी उचित होगा कि परिजन इस विशेषांक की अतिरिक्त प्रतियाँ विक्रय हेतु मँगाएँ । इतनी महत्त्वपूर्ण सामग्री पास रखना हर कोई चाहेगा। पड़ने वाली न्यूनतम प्रतियों के अलावा अपने संपर्क के भावनाशील बुद्धिजीवी वर्ग के लिए थोड़ी "सबसीडी" देकर एक रुपये मूल्य पर एक प्रति विक्रय की जा सकती हैं। जितनी प्रतियाँ मँगानी हों, उसकी सूचना एवं राशि परिजन शीघ्र भेज दें। बाद में यह जीवनवृत्तांत जब पुस्तकाकार छपेगा, तो लागत मूल्य पाँच रुपये से कम न होगा।
— अखण्ड ज्योति संस्थान, मथुरा