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Akhand Jyoti
Year 1984
Version 2
सद्विचार
सद्विचार
May 1984
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विनम्रता एक संकेत है, जिसे पवित्रता और शालीनता का परिचय देने के लिए चेहरे पर लटका हुआ देखा जा सकता है।
— सेम्युआल
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Page Titles
अगले अंक में गुरुदेव का समग्र जीवन-वृतांत
विस्मृति की मूर्च्छना
तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु
हे मानव! तू पहले अपनी आत्मा को पहचान
आयु का लेखा-जोखा
नर-पशु नहीं, नर-नारायण बनें
जीवन– एक अनबूझ पहेली
परमात्मा की नजर (कहानी)
सत्य के तीन पहलू
तर्क— विवेकसम्मत हो तो ही श्रेयस्कर
मन का दर्पण स्वच्छ होना चाहिए
विराट मन ही इस विश्व का नियामक
प्रत्यक्ष एवं परोक्ष के मध्य सघन संपर्क स्थापित हो
वातावरण में छाए संस्कारों की महत्ता
योग विज्ञान एवं तंत्रशास्त्र एक ही वृक्ष की दो शाखाएँ
सशक्त ध्रुवकेंद्रों की अधिष्ठात्री– कुंडलिनी
कायाकल्प एक सतत क्रियाशील प्रक्रिया— एक वैज्ञानिक कथन (सद्विचार)
सत्य को न समझ पाने की आत्मघाती विडंबना
मानवी सभ्यता का नवोन्मेष सुनिश्चित
झूठी बिल्ली (कहानी)
बड़प्पन का मापदंड— संगतिकरण
हर व्यक्ति प्रतिभावान बन सकता है
दृढ़ संकल्प की सुनिश्चित परिणति
शस्त्रों से भी अधिक सामर्थ्यवान मन की शक्ति
आवेशग्रस्त न रहें, सौम्य जीवन जिएँ
सद्विचार
समस्याओं का समाधान दृष्टिकोण के परिष्कार पर निर्भर
सफलता ऐसों के कदम चूमती है
“रस्सी साँप या साँप रस्सी”
कर्ण की नीति-निष्ठा से प्रभावित हुआ अश्वसेन (कहानी)
“कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतां यत्”
मानवता को नया जीवन देने वाली दिव्य वनौषधियाँ
आत्मिकी की एक सर्वांगपूर्ण शाखा — ज्योतिर्विज्ञान
यज्ञ-प्रक्रिया में गंध की उपादेयता एवं प्रभावक्षमता
व्यर्थ बटोरी संपदा अनर्थ ही करता है (कहानी)
परिस्थिति परिवर्तन की संधिबेला
सुविधा नहीं, सुधारने की शिक्षा (कहानी)
अपनों से अपनी बात: गुरुदेव की सूक्ष्मीकरण साधना का प्रयोजन, जिज्ञासाएँ एवं उनका समाधान
चीटियों से ली समझदारी की शिक्षा (कहानी)
"काम के लोग"
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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