आयु का लेखा-जोखा

May 1984

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नई सृष्टि की रचना हुई। भगवान का दरबार लगा था। सभी प्राणियों में वे आयु का वितरण कर रहे थे। अधिक भीड़ देखकर मनुष्य एक किनारे हटकर बैठ गया। भीड़ समाप्त होने पर वह भगवान के पास पहुँचा। उस समय दूसरे प्राणी तो जा चुके थे, पर वहाँ एक बैल, एक कुत्ता, एक उल्लू मौजूद थे। मनुष्य ने कहा— देव! मेरी आयु?

भगवान के कोष में मात्र पच्चीस वर्ष आयु बची थी। वह उन्होंने मनुष्य को दे दी। मनुष्य गिड़गिड़ाया— भगवन्! इतनी कम आयु? इससे भला क्या होगा?

पास खड़े बैल ने परमात्मा से पूछा— महाराज! आपने मुझे आयु तो अधिक दे दी, पर काम नहीं बताया। भगवान बोले— “तुझे बोझ ढोना होगा। जीवन भर वजन उठाना होगा। खाने को मिलेगा घास-पात। बैल बहुत निराश हुआ। उसने प्रार्थना की— देव! मेरी आयु पच्चीस वर्ष काटकर मनुष्य को देने की कृपा करें। वह आयु की माँग भी कर रहा था। ईश्वर ने उसकी बात मान ली। पर मनुष्य उतने से भी संतुष्ट न हुआ। अधिक आयु के लिए फिर गिड़गिड़ाया।

कुत्ता भी पास में ही खड़ा था। वह बोला— “दयानिधि! आपने इतनी लंबी आयु देकर मुझे काम नहीं बताया।” भगवान ने कहा— “तुझे जीवन भर चौकीदारी करनी होगी, मनुष्य के साथ स्वामिभक्त होकर रहना होगा। बदले में तुझे रोटी का टुकड़ा मिल जाएगा।”

कुत्ता बोला— मेरी आयु में से भी पच्चीस वर्ष काटकर मनुष्य को देने की कृपा करें। भगवान ने कहा— तथास्तु!

पचहत्तर वर्ष की आयु पाकर भी मनुष्य असंतोष व्यक्त कर रहा था। उसने कुछ वर्ष और आयु की माँग की।

उल्लू भी वह बातचीत सुन रहा था। परमात्मा से उसने भी अपने काम के बारे में पूछा? वह बोले— तुझे सारी रात किसी खंडहर में अथवा वृक्ष के कोटर में बैठकर चीखना होगा।”

उल्लू ने कहा— देव! तब तो यह आयु बहुत भारी पड़ेगी। मेरी आयु का पच्चीस वर्ष भी मनुष्य को दे दें। परमात्मा ने उसकी बात मान ली। उधर शतायु पाकर मनुष्य अत्यंत हर्षित हुआ।

बच्चे के रूप में मनुष्य अवतरित हुआ। सबका प्यार मिला। बड़ा हुआ— युवक के रूप में विकसित हुआ। विवाह हुआ, दायित्वों का बोझ बढ़ता गया। बैल की तरह पच्चीस वर्षों तक वह बोझ ढोता रहा। क्षमताएँ खोई— सम्पत्ति कमाई। शक्ति तो समाप्त हो गई; पर चिंताएँ अधिक बढ़ गईं। धन की सुरक्षा की; बेटे-पोतों के देखभाल की। युवा बेटे ने कार्यभार सँभाला; पर उस अधेड़ को चैन कहाँ? कहीं कोई संपत्ति हड़प न ले— बेटे को धोखा न दे, मन में यह आशंका सदा बनी रहती। वफादार कुत्ते की तरह पच्चीस वर्ष जीवन के और गुजारे। बुढ़ापे ने अपना शिकंजा कसा। कमर झुक गई। बची सामर्थ्य भी जाती रही। चलने में पैर लड़खड़ाते थे, आँखों से कम दिखाई पड़ने लगा। दुर्बलता के कारण अनेकों बीमारियों ने शरीर में अड्डा जमाया। उल्लू की आयु आई। वह रात भर न तो स्वयं सोता और न दूसरों को सोने देता। भयंकर यंत्रणा में पच्चीस वर्ष और गुजरे। मृत्यु ने दस्तक दी। असंतुष्ट वह इस संसार से विदा हुआ।
यह कथा है उन सभी मनुष्यों की, जो सचमुच ही भगवान की दी हुई लंबी आयु को निष्प्रयोजन व्यतीत करते हैं। पेट और प्रजनन के इर्द-गिर्द समस्त चेष्टाएँ चलती हैं। जीते और मेहनत भी करते हैं, पर अपने-अपने शरीर और उससे जुड़े संबंधों तक सीमित रह जाते हैं। बैल, कुत्ते और उल्लू की तरह जीवन के दिन किसी तरह पूरे करते हैं। उस स्तर से उबरने का प्रयास नहीं करते। अंततः हाथ मलते हुए इस दुनिया से विदा हो जाते हैं।

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