सफलता ऐसों के कदम चूमती है

May 1984

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स्वस्थ आकांक्षाएँ ही प्रेरणा की केंद्रबिंदु हैं। आगे बढ़ने— ऊँचा उठने— विकास की ओर निरंतर अग्रसर होने की आकांक्षा न उठी होती, तो मनुष्य आदिम अवस्था में ही पड़ा रहता। आज की प्रगतिशील स्थिति में पहुँच पाना संभव न हो पाता। आकांक्षाओं की प्रेरणा से ही पुरुषार्थ को गतिशील होने का अवसर मिला तथा विकास का मार्ग प्रशस्त हुआ है। मनःशास्त्री कहते हैं कि मनुष्य की दृश्यमान हलचलों का कारण आकांक्षाएँ हैं। प्रतिभा, धन, प्रतिष्ठा अथवा श्रेय की आकांक्षा के इर्द-गिर्द ही संसार की गति है। जीवन से वे तिरोहित हो जाएँ, तो कुछ शेष बचता नहीं। निष्क्रिय और निचेष्ट जीवन का अभिशाप लद जाता है। मानव समाज का गहन अध्ययन करने वाले मनोविज्ञानी कहते हैं कि, “जिस समाज अथवा राष्ट्र की आकांक्षाएँ जितनी प्रबल होंगी, भौतिक दृष्टि से वे उतने ही संपन्न होंगे।”

आकांक्षाओं की पूर्ति में अभीष्ट स्तर की प्रतिभा एवं पुरुषार्थ का होना आवश्यक है। अन्यथा वे मात्र ललक बनकर रह जाती है, जिनका कुछ प्रतिफल निकलता नहीं। साथ ही उनकी दिशाधारा का रचनात्मक होना भी उतना ही आवश्यक है, नहीं तो उनकी परिणति स्वयं एवं समाज दोनों ही के लिए अहितकर होती है।

नाम कमाने की आकांक्षा अधिकांश व्यक्तियों के मन में होती है। कुछ संपदासंग्रह का मार्ग चुनते हैं, कुछ प्रतिभार्जन का तथा कुछ शक्तिसंग्रह का। जो अपनी स्थिति का सही मूल्यांकन करके तदनुरूप प्रयास करते हैं, वे सफल भी होते हैं; पर अधिकांश की इच्छाओं का उनकी स्थिति से तालमेल बैठता नहीं, वे अभीष्ट स्तर का पुरुषार्थ नहीं कर पाते हैं। फलतः उन्हें असफलता ही हाथ लगती है।

इसके विपरीत संसार में ऐसे व्यक्ति भी समय-समय पर विभिन्न देशों में पैदा हुए हैं, जिन्होंने अपनी सामर्थ्य को समाज की भौतिक समृद्धि बढ़ाने में खपाया। संपदा, पद एवं प्रतिष्ठा की कामना से दूर रहकर वे योगी की तरह कार्य में लगे रहे। उनके काम ही बाद में उनके नाम बन गए। ऐसे व्यक्तियों में आविष्कारक वैज्ञानिकों की एक बड़ी संख्या है, जिनमें से कुछ मूर्धन्यों का नाम उल्लेखनीय है।

‘गेब्रियल डेनियल फारेनहाइट’ ने दुकानदारी के कार्य में विफल होकर भौतिकी का अध्ययन शुरू किया। व्यवसाय अपनाया— काँच का फुलाना तथा भौतिकी यंत्रों का निर्माण करना। 1724 में उसने 0 डिग्री से 212 डिग्री अक्षांक वाले तापमापी का निर्माण किया। जल के अतिशीत होने तथा दाव बदलने के साथ-साथ उबालबिंदु बदलने का सिद्धांत खोजने का श्रेय भी ग्रेबियल को ही है। उसका नाम ‘फारेनहाइट’ ही तापमान मापने की इकाई बना।

‘जेम्स वाट’ ने सुधरे हुए भाप इंजन का निर्माण किया। अपने अनवरत लगन के कारण विश्वविख्यात वैज्ञानिक बना। ‘वाट’ बिजली को मापने की एक इकाई है, जिसे सभी जानते हैं।

‘एलेसेंड्रो वोल्टा’ अत्यंत प्रतिभाशाली छात्र था। वह ‘पाविया विश्वविद्यालय’ (इटली) में भौतिकी का अध्यापक नियुक्त हुआ। वहीं कार्य करते हुए वह अनुसंधान कार्य में लगा रहा। उसने स्थिर विद्युत को जमा करने वाले उपकरण इलेक्ट्रो फोटीक सेल, वोल्टेनिक सेल तथा बैटरी का निर्माण किया। ‘धारा-विद्युत सिद्धांत’ की प्रस्तुति वोल्टा ने ही की। भौतिकी विज्ञान के क्षेत्र में ‘वोल्टा’ ‘विभवांतर’ मापन की एक इकाई है।

सोने में मिलावट ज्ञात करने के जिस सिद्धांत का आविष्कार यूनान के महान गणितज्ञ ‘आर्कीमिडीज’ ने किया, वह आज भी ‘आर्कीमिडीज सिद्धांत’ के रूप में विख्यात तथा मान्यता प्राप्त है।

‘ग्रैवियल फेलोपियो’ इटली में चिकित्साशास्त्री थे तथा ‘पैडुआ विश्वविद्यालय’ में शरीर-रचना विज्ञान और वनस्पति शास्त्र विभाग के भी अध्यक्ष रहे। शरीर-रचना विभाग पर उन्होंने एक बृहत ग्रंथ लिखा। गर्भाशय नली एवं कर्णपटल तंत्रिका जैसे आंतरिक अवयवों का पता लगाया। मादा स्तनपायियों के जननांग में पाई जाने वाली एक नली, जिससे होकर अंड या डिंब गर्भाशय में पहुँचता है, की खोज फेलोपियो ने ही की। उसके नाम पर ही उस नलिका का नाम ‘फेलोपियो ट्यूब’ पड़ा।

‘मार्सेलो मैलपिघी’ इटली के ‘बोलोना’ तथा ‘पीसा विश्वविद्यालयों’ में चिकित्सा विज्ञान के प्राध्यापक रहे। भ्रूण विज्ञान, ऊतक विज्ञान तथा पादप शरीर-रचना विज्ञान के विद्वान थे। उन्होंने शरीर विज्ञान पर दो महत्त्वपूर्ण पुस्तकें लिखीं तथा वनस्पति विज्ञान में अनेकों खोजें की। त्वचा की परत के ठीक बाद पाए जाने वाली बाह्य त्वचा की एक परत की खोज उन्होंने की, जिसमें निरंतर कोशिका का विभाजन होता रहता है तथा त्वचा को गहरा रंग देने वाला रंजक पदार्थ ‘मेलानिन’ पाया जाता है। उस परत का नाम मैलपिघी के नाम पर ‘मैलपिघियन परत’ पड़ा।

‘कार्ल फ्रेडरिक गॉस’ चौदह वर्ष की अल्पायु में ‘गैस्यूकिलडीय ज्यामिती’ और अठारह वर्ष की आयु में गणित की नई ‘परिकलन विधि’ प्रस्तुत करने वाले जर्मन भौतिकविद् थे। उन्होंने ग्रहों की कक्षा का परिकलन करने की विधि का भी आविष्कार किया। चुंबकीय क्षेत्र, घनत्व की इकाई — ‘गॉस’, कार्ल फ्रेडरिक गॉस की ही खोज है।

‘आंद्रे मैरी एंपीयर’ फ्रांस के प्रसिद्ध भौतिकीविद् तथा रसायनशास्त्री थे। वे बारह वर्ष की आयु में ही ‘अवकलन गणित’ के विशेषज्ञ हो गए। एंपीयर ने सबसे पहले यह बताया कि चुंबकीय पदार्थों में चुंबकत्व का मूल स्रोत एक विद्युतधारा होती है, न कि चुंबकीय ध्रुव। धारा-विद्युत की इकाई ‘एंपीयर’ मैरी एंपीयर का ही आविष्कार है।

‘जॉर्ज साइमन ओम’ ‘म्यूनिख विश्वविद्यालय’ में भौतिक विज्ञान के प्राध्यापक थे। उन्होंने विभवांतर विद्युतधारा तथा विद्युत-प्रतिरोध के बीच गणितीय संबंध की खोज की तथा डी.सी. विद्युत परिपथों की गणितीय व्याख्या की। ‘ओम’ विद्युत प्रतिरोध मापने की एक व्यावहारिक इकाई है।

‘जेम्स प्रेस्कॉट जूल’ ब्रिटिश भौतिकीविद् थे। उन्होंने ताप के ‘यांत्रिक सिद्धांत’, गैसों के ‘अणु गणित सिद्धांत’ तथा ‘गैसीय अणु के वेग के ‘आकलन सिद्धांत’ की खोज की। ‘जूल सेंटीमीटर— ग्राम— सेकेंड प्रणाली में ऊर्जा की इकाई के रूप में प्रेस्कॉट का नाम अमर है।

‘लुई पाश्चर’ विख्यात फ्रांसीसी रसायनज्ञ तथा ‘लाइल विश्वविद्यालय’ में रसायन शास्त्र के प्राध्यापक थे। किण्वन प्रक्रिया पर उन्होंने विशद् अध्ययन-अनुसंधान किया। पास्चराइजेशन— तापोपचार द्वारा दूध आदि तरल पदार्थों में हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करने की विधि की खोज पाश्चर की ही देन है। इस खोज से वे तरल पदार्थ अधिक समय तक सुरक्षित रखे जा सकते हैं।

‘जेम्स क्लार्क मैक्सवेल’ महान ब्रिटिश भौतिकीविद्, ‘कैंब्रिज विश्वविद्यालय’ में प्राध्यापक थे। उन्होंने विद्युतधारा तथा चुंबकीय-क्षेत्र के बीच परस्पर क्रिया की स्थापना की, जो संवाद- प्रेषण के उपकरणों के विकास का आधार बना। उनका नाम मैक्सवेल—  सेंटीमीटर— ग्राम-सेकेंड प्रणाली में चुंबकीय फ्लक्स की इकाई के रूप में प्रख्यात है।

विज्ञान-क्षेत्र में ऐसे अगणित नाम हैं, जो वैज्ञानिकों के कामों के कारण जाने हैं। न्यूटन, डाल्टन, मैडम क्यूरी, आइन्स्टीन जैसे नामों की लंबी शृंखला है, जिन्होंने अपनी विलक्षण प्रतिभा का सुनियोजन करके अद्भुत आविष्कारों को जन्म दिया। जिनसे समस्त मानव जाति किसी-न-किसी रूप में लाभान्वित हो रही है।

श्रेय अर्जित करने के लिए आवश्यक नहीं कि मनुष्य अत्यंत बुद्धिमान हो। ऐसे व्यक्ति तो थोड़े-से होते हैं; पर महानता का मार्ग हर किसी के लिए खुला है। अन्वेषण बुद्धि की कमी किसी में नहीं है। हर कोई अपने ही प्रयत्नों से उस मार्ग में आगे बढ़ता चल सकता है। परहित हेतु प्रतिभा का अवलंबन लेने वाले परमार्थपरायणों का यश इतिहास के स्वर्णाक्षरों में अमर है। उनका अनुगमनकर श्रेय अर्जित कर सकना हर किसी के लिए संभव है।


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