परमात्मा की नजर (कहानी)

May 1984

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फकीर जुन्नैद आँखों में आँसू भरकर परमात्मा से प्रार्थना कर रहे थे— “मैंने सब कुछ छोड़ दिया, अब एक तेरे ऊपर नजर टिकी है; पर प्यारे यह तो बता कि तेरी नजर भी मेरी तरफ है या नहीं?”

भीतर का परमात्मा बोला— “जब तक दूसरे की नजर अपनी ओर होने, न होने में संदेह है, तब तक दूरी बनी ही रहती है। अपनी नजर जमाए रहने में ही संतोष कर। फिर देख!”


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