एक बाप के कई लड़के थे। सभी बहुत चतुर। खराबी इतनी थी कि वे अपने को बहुत
बुद्धिमान मानते थे। कुशलता पर अहंकार करते और एकदूसरे से बात-बात में
टकराते रहते थे।
बाप ने नशा उतारने की सोची, सो एक कटोरी चीनी और मिट्टी मिलाकर वहाँ रख दी, जहाँ चीटियों का बिल था।
लड़को को बुलाकर कहा, वे लोग चीनी और मिट्टी के कण अलग-अलग कर दें।
लड़के लगे रहे। बहुत समय बीत जाने पर भी अभी चौथाई काम नहीं निपटा, खीजकर चले गए।
रात गए बाप लौटा, तो उनसे उसे अलग करने के काम को निपटाने की बावत पूछताछ की। लडकों ने अपनी असमर्थता प्रकट कर दी।
बाप
वहाँ गया, जहाँ सम्मिश्रण बिखरा पड़ा था। देखा तो उसमें से चीनी नदारद। बाप
ने पूछा— “बताओ, तुममें से किसने चीनी निकाली। लड़कों ने फिर अपनी गैर
जानकारी व्यक्त कर दी।
बाप ने कहा— “देखो, उसे छोटी-सी चींटियाँ
मिल-जुलकर बीन ले गईं। एक तुम हो, जो चींटी जितनी भी अकल नहीं रखते और उनकी
तरह मिल-जुलकर काम क्या नहीं कर सकते? यही हाल रहा, तो आगे बड़ी सफलताएँ
क्या पा सकोगे?”
लड़कों की अहंता चली गई, वे चीटियों से लगन, समझदारी और मिल-जुलकर काम करने की शिक्षा लेकर तदनुसार चल पड़े।
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