झूठी बिल्ली (कहानी)

May 1984

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एक बिल्ली की गरदन दूध के बरतन में फँस गई। मुश्किल से बरतन टूटा, फिर भी उसका घेरा गले में फँसा था।

उसने चूहों से कहा— वह केदारयात्रा से लौटी है। प्रमाण के लिए यह केदार-कंगन गले में बँधा है। तुम लोग निर्भय रहो और मेरा सत्संग सुनने आया करो।

मूर्ख चूहों ने विश्वास किया और वे आने लगे। बिल्ली उनसे पीछे वाले एक को पकड़ लेती और पेट भरती। इस प्रकार एक-एक करके सभी घटते गए। उनमें से एक कटी पूँछ का सरपेच था, वह भी उदरस्थ हो गया। तब चूहों की आँखें खुलीं— सच्चा बोध हुआ। बिल्ली की असलियत समझी और दूर से ही नमस्कार करने लगे।


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