अध्यात्म निष्क्रियता नहीं सिखाता और न जो कुछ हो रहा है उसे देखते सहने, करते रहने की प्रेरणा उसमें है। शान्ति का अर्थ चुप बैठना नहीं है। कर्त्तृत्व और प्रगति की ओर से मुँह मोड़ लेने का अध्यात्म दर्शन के साथ सम्बन्ध जोड़ना ब्रह्म विद्या के महान तत्व दर्शन पर लांछन लगाना है।
भेड़े मिमियाती भर है- असत्य नहीं बोलती, खरगोश किसी की हिंसा नहीं करते, उन्हें न तो सत्यवादी कहते हैं और न अहिंसा साधक। अन्धे, बहरे, गूँगे न अशुभ देखते हैं, न अशुभ सुनते हैं, न अशुभ बोलते हैं, उन्हें मुनि नहीं कहा जाता। गहरी नींद में अशुभ क्रिया नहीं होती, तो क्या उसे पुण्यार्जन का समय कहें?
अध्यात्म की प्रेरणा लौकिक और पारलौकिक सुख सिद्धि के लिये कठोर धन एवं मनोयोग को नियोजित करना है। अशुभ विचारों और अशुभ आचारों को निरस्त करने के लिए जो घोर पुरुषार्थ करना पड़ता है- आध्यात्मिकता को उसी से जुड़ा हुआ मानना चाहिए।