प्रदानं प्रचछन्नं गृहमुपगतें सम्भ्रमविधिः प्रियं कृत्वा मौनं, सदसि कथनं चाप्युपकृते। अनुत्सेको लक्ष्मयाँ निरभिभवसाराः परकथाः, सताँकेनोद्दिष्टं विषमसिधाराव्रतमिदम्॥
दान को गुप्त रखना, घर पर आए मनुष्य का सत्कार करना, परोपकार करके मौन रहना, दूसरों के किये हुए उपकारों को सभा में वर्ग न करना, धन पाकर गर्व न करना और पराई चर्चा निरादर की बात वचा कर करना, यह असि-धार के समान कठिन व्रत धारण करना महापुरुषों का सहज स्वभाव होता है।