अभ्यास किया जाय तो हवा में उड़ा जा सकता है।

November 1973

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सन 1902 में बंगाल के एक साधु अगस्तिया ने हठ योग की एक प्रतिज्ञा की। प्रतिज्ञा यह थी कि वह लगातार 10 वर्ष तक अपना बाँया हाथ उठाये ही रहेगा कभी नीचे नहीं गिरा।

और सचमुच ही वह लगातार 10 वर्षों तक बिना हिलाए हाथ ऊँचा किये रहे। इस बीच एक चिड़िया ने समझा यह किसी पेड़ की टहनी है सो उसने बड़े मजे के साथ योगी के उठाये हुए हाथ की हथेली पर घोंसला बना लिया और उस पर अण्डे भी दिये। हाथ की हड्डियाँ सीधी मजबूत हो गई, मुड़ना बंद हो गया और इस तरह हाथ बेकार हो गया किन्तु योगी का कहना था कि इससे उसे कोई कष्ट नहीं हुआ। योग की ऐसी साधनाओं के पीछे कोई दर्शन नहीं है यदि कुछ है तो इतना ही कि तितीक्षा पूर्ण अभ्यास के द्वारा मनुष्य चाहे तो अपने शरीर की सामान्य क्रियाओं को असामान्य बना सकता है।

शरीर में एक नन्ही सी सुई चुभ जाती है तो बड़ा कष्ट होता है किन्तु सिंगापुर के एक भारतीय योगी ने जिसका उल्लेख एवन्डर बुक आफ स्ट्रेन्ज फैक्ट्स में भी है, अपने शरीर में नक्की 50 भाले आर-पार घुसेड़ लिये और इस अवस्था में भी वह सब से हँस हँस कर बातचीत करता रहा लोगों ने कहा यदि आपको कष्ट नहीं हो रहा हो तो थोड़ा चलकर दिखाइये। इस पर योगी ने 3 मील चलकर भी दिखा दिया। उन्होंने बताया कि कष्ट दरअसल शरीर को होता है, आत्मा को नहीं। यदि मनुष्य अपने आपको आत्मा में स्थित कर ले तो जिन्हें सामान्य लोग यातनाएँ कहते हैं वह कष्ट भी साधारण खेल जैसे लगने लगते हैं।

इसका एक उदाहरण विन्ध्याचल के योगी गणेश गिर ने प्रस्तुत किया। उन्होंने एक बार अपने होठों के आगे ठोड़ी वाले समतल मैदानी हिस्से में थोड़ी गीली मिट्टी रख कर उसमें सरसों बो दिये जब तक सरसों उगकर बड़े नहीं हो गये और उनकी जड़ों ने खाल चीर पर अपना स्थान मजबूत नहीं कर लिया तब तक वे धूप में चित्त लेटे रहे।

“साहिब अल्लाह शाह” नामक लाहौर का एक मुसलमान फकीर 600 पौण्ड से भी अधिक वजन की मोटी लोहे की साँकलें पहने रहता था। वृद्ध हो जाने पर भी अपने अभ्यास के कारण इतना वजन भार नहीं बना। पंजाब में वह “साँकल वाला” और जिगलिग के नाम से आज भी याद किया जाता है। उसकी मृत्यु के बाद साँकलों की तौल की गई तो वह 670 पौण्ड निकली।

यह तो भारतवर्ष के हठयोगियों की बातें है अन्य देशों में भी अभ्यास द्वारा अर्जित ऐसी विचित्रताएँ देखने को मिल जाती है जो इस बात की प्रतीक है कि मनुष्य कुछ विशेष परिस्थितियों में पैदा अवश्य किया गया है किन्तु यदि वह चाहे तो अपने आपको बिलकुल बदल सकता है।

इक्का जाति के राजा अटाहुल्लापा ने अपने कानों में वजनदार छल्ले डालकर उन्हें 15 इंच तक बढ़ा लिया था। सारा शरीर सामान्य मनुष्य का होते हुए भी कान हाथी के से कान लगते थे।

सिख सम्राट सरदार रणजीतसिंह के दरबार में प्रसिद्ध भारतीय योगी सन्त हरदास ने जनरल वेन्टूरा के सम्मुख अपनी जीभ को निकाल कर माथे का वह हिस्सा जीभ से छूकर दिखा दिया जो दोनों भौहों के बीच होता है।

सन्त हरदास बता रहे थे कि जीभ को मोड़ कर गरदन के भीतर जहाँ चिड़िया होती है उस छेद को बंद कर लेने से योगी मस्तिष्क में अमृत का पान करता है। ऐसा योगी अपनी मृत्यु को जीत लेता है। अंग्रेजों का कहना था कि जीभ द्वारा ऐसा हो ही नहीं सकता। इस पर संत हरदास ने अपनी जीभ को आगे निकाल रख दिया उन्होंने बताया कि कुछ औषधियों द्वारा जीभ को सूत कर इस योग्य बनाया जाता है।

सरसजिंगा- अफ्रीका के हब्शियों में अपने ओठ बढ़ाने की प्रथा है इसके लिए वे लकड़ी की तश्तरियाँ बनाकर उनसे ओठों को बाँध देते हे ओठ जितना बढ़ते जाते हैं बड़ी तश्तरियाँ बाँध दी जाती है और इस प्रकार कई स्त्रियाँ तो 14-15 इंच अर्थात् सवा फुट व्यास की ढक्कनदार तश्तरी की तरह बढ़ा लेती है।

फिजी द्वीप के निवासी एक त्योहार मनाते हैं उस दिन उन्हें आग पर चलना पड़ता है। इसे अभ्यास भी कहा जा सकता है और आत्मविश्वास की शक्ति भी, कि वे लोग दहकते आग के शोलों पर घंटों नाचते रहते हैं किन्तु कभी ऐसा कोई अवसर नहीं आता कि उनके पैर जल जाते हो।

आयरन ड्यूक आफ वेलिंग्टन कंसास राज्य अमेरिका के जान डब्ल्यू हार्टन ने पेट में न जाने कहाँ की आग पैदा कर ली थी कि नाश्ते में 40 पौंड तरबूजा खा लेने के बाद भी सोडा की बोतलें टूटे शीशे, अण्डों के छिलके और केले के अनगिनत छिलके चबा जाते थे। एक बार एक इंजीनियर द्वारा चुनौती दिये जाने पर उन्होंने भरपूर भोजन करने के बाद सीमेन्ट का पूरा कट्टा खा लिया और उसे इस स्वाद के साथ साथ एक एक चम्मच भक्षण किया जैसे छोटे बच्चे प्रेम पूर्वक शक्कर या मिठाई खाते हैं उन्होंने यह भी कहा मैं कुछ और अभ्यास करूँ तो इतनी ही मात्रा में विष तक खाकर दिखा सकता हूँ।

भारतीय योगी चाँगदेव की योग-गाथायें सारे भारतवासी जानते हैं एक एक कर चौदह बार उन्होंने मृत्यु को वापस लौटाया। उनकी आयु 1400 वर्ष की हो गई थी। ईसामसीह के समय से लेकर 12 वीं शताब्दी सन्त ज्ञानेश्वर के समय तक उनकी गाथाओं के उल्लेख मिलते हैं। वह शेर की सवारी किया करते थे और शेर को हाँकने के लिए जहरीले साँप की चाबुक लिये रहते थे। एक बार उनको हवा में स्थिर रहने की चुनौती दी गई तब महाराष्ट्र के एक गाँव में उन्होंने हजारों लोगों के सम्मुख भाषण देने का प्रस्ताव किया। एक एक कर 14 चौकियाँ रखी गई सबसे ऊपरी चौकी पर बैठकर उन्होंने प्रवचन प्रारम्भ किया। पीछे उनके पूर्व आदेशानुसार शिष्यों ने एक एक कर सभी चौकियाँ हटा ली। लोगों ने उनकी जय जयकार की तो वे बोले भाइयों! इसमें मेरा कुछ बड़प्पन नहीं योग क्रियाओं के अभ्यास द्वारा मनुष्य चाहे तो पक्षियों की तरह हवा में उड़ सकता है सितारों की तरह हवा में अधर लटक कर संसार का दृश्य देखता रह सकता है।


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