क्या हम वस्तुतः अभावग्रस्त और दरिद्री हैं?

November 1973

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आमतौर से हम उन्हीं वस्तुओं और परिस्थितियों का चिन्तन करते हैं जो अपने पास नहीं है। चिन्ता, व्यग्रता और खिन्नता का कारण प्रायः अभावग्रस्तता का चिन्तन ही होता है। रुग्णता या दुर्घटना जैसी विपत्तियाँ तो कभी कभी ही आती है। जिन परिस्थितियों में जीवन दूभर हो गया हो ऐसे अभाव भी कभी असाधारण आपत्ति में फंस जाने पर ही आते हैं। भूख से तड़प कर या ठंड से सिकुड़ कर अन्न, वस्त्र के अभाव में भी मरने वाले कुछ तो हो ही सकते हैं पर इतने नहीं जिससे मानवजाति के शोक संतापों में उन्हें प्राथमिकता दी जा सके।

अधिक से अधिक एक चौथाई दुःख ही ऐसे माने जा सकते हैं जिनके पीछे कुछ कारण या तथ्य होते हैं। शेष तीन चौथाई तो अचिन्त्य चिन्तन के आधार पर गढ़े गये होते हैं। आमतौर से लोग अपने को अभाव ग्रस्त मान कर दुःखी रहते हैं। अमुक व्यक्ति के पास कितने साधन है, उतने हमारे पास कहाँ? उसके जैसे ठाठ-बाट हम कहाँ बना पाते हैं, हमारा परिवार अमुक समुन्नत परिवार जैसा धनीमानी कहाँ है? यही चिन्ताएँ आमतौर पर लोगों को सताती रहती है। परोक्ष रूप से हम ईर्ष्या की आग में जलते रहते हैं और दैन्य दारिद्रय भरे दुर्भाग्य पर आँसू बहाते हैं।

चिन्तन की इस विकृति को हटाकर यदि अपने से पिछड़े लोगों के साथ तुलना करे तो प्रतीत होगा कि जहाँ लाखों से हम पिछड़े हुए है वहाँ करोड़ों की अपेक्षा अधिक सुविधा जनक समुन्नत स्थिति में भी है। ऐसे लोग दुनिया में कम नहीं जिन्हें हमारी जैसी स्थिति मिल जाय तो अपने को बहुत भाग्यवान समझे और फूले न समाये।इन लोगे के साथ यदि तुलना की जाय तो प्रतीत होगा कि अपनी स्थिति अभावग्रस्तता की नहीं साधन सम्पन्नता की है।

वस्तुतः हम अभाव ग्रस्त नहीं है। इस संसार में कीड़े मकोड़े जीव जन्तुओं और पशु पक्षियों की करोड़ों अरबों जातियाँ मौजूद है। क्या बोलने, सोचने, लिखने, पढ़ने, गृहस्थ बनाने, उपार्जन, चिकित्सा, वाहन, संचार जैसे साधन किसी और को प्राप्त है? भोजन आच्छादन निवास और गृहस्थ के सुनिश्चित साधन किसी और को प्राप्त है? भूतल पर निवास करने वाले समस्त प्राणधारियों की तुलना में क्या हमारी स्थिति ऐसी नहीं है जिस पर संतोष व्यक्त कर सके? यदि हम इन्हीं पिछड़े जीवों में से एक होते तो किसी दुखी से दुखी मनुष्य को भी देखकर यही सोचते कि यह कितना सुखी और साधन सम्पन्न है। उसकी दृष्टि से यदि हम अपने को देख सके तो यह समझते देर न लगेगी कि सुख संतोष के इतने अधिक साधन प्राप्त करने वाले सौभाग्यशाली मनुष्यों में से हम भी एक है।

चिन्तन की अद्भुत क्षमता मानव प्राणी को नियति का एक ऐसा उपहार है जिसे अद्भुत और अनुपम कह सकते हैं उसमें सुख और सन्तोष के समस्त आधार मौजूद है। साथ ही असीम प्रगति की एक से एक बढ़ी-चढ़ी संभावनाएं भी विद्यमान है। यदि हम चिन्तन प्रक्रिया का सही उपयोग सीख सके तो केवल स्वर्गीय हर्षोल्लास से भरे पूरे दिन बिता सकते हैं वरन् अभीष्ट दिशा में उच्चतम प्रगति का भी पथ प्रशस्त कर सकते हैं।


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