लुकमान तब प्रसिद्ध चिकित्सक नहीं एक अमीर के यहाँ घरेलू नौकर मात्र थे।
अमीर इस नौकर से तो खुश था, पर ईश्वर को अक्सर गालियाँ देता रहता और कहता कि उसने मुझे कई बार कठिनाइयों में डाला है।
एक दिन अमीर ककड़ी खा रहा था, उसे वह कडुआ लगी तो नौकर को दे दी। लुकमान ने उसे बड़े चाव के साथ खा लिया, मानो वह स्वादिष्ट ही हो।
अमीर ने पूछा- भला ऐसी कडुआ ककड़ी तुमने ऐसी रुचि पूर्वक कैसे खा ली?
लुकमान ने कहा- आप मेरे मालिक है- रोज ही स्वादिष्ट भोजन देते हैं, एक दिन कुछ कडुआ दे दिया तो उसे आप की कृपा स्वीकार करने में क्यों आनाकानी करूँ?
अमीर को अपनी भूल याद आई। ईश्वर ने अनेक सम्पदायें और सुविधायें दी है फिर यदि कभी कोई कटु लगने वाला अनुदान भी वह देता है तो उसकी सद्भावना पर सन्देह क्यों किया जाय?